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________________ धनपाल का पाण्डित्य 75 बुद्ध के दशबल नामका उल्लेख मिलता है। दान, शील, क्षमा, अवौर्य, ध्यान, प्रज्ञा, बल उपाय, प्रणिधि तथा ज्ञान, इन दस बलों के कारण बुद्ध को दशबल कहा जाता है। जैन एक उपमा के प्रसंग में जैन दर्शन का उल्लेख मिलता है। जैन दर्शन को आहत-दर्शन भी कहा गया है । "नगम" तथा "व्यवहार "जैन-दर्शन के पारिभाषिक शब्द हैं । जैन दर्शन में ज्ञान के दो रूप माने गये हैं, प्रमाण और नय । प्रमाण का अर्थ वस्तु के उस ज्ञान से है, जैसी वह स्वयं है और नय का तात्पर्य उस वस्तु के ज्ञाता के विशेष प्रसंग अथवा सम्बन्ध में ज्ञान से है । नय वह दृष्टिकोण है जिससे कि हम किसी वस्तु के विषय में परामर्श देते हैं । वस्तु के अनेक धर्मों में से किसी एक धर्म के द्वारा वस्तु का निश्चय करने पर नय का ज्ञान होता है। नंगम नय तथा व्यवहार नय ये दो नय के भेद हैं। नेगम नय-किसी क्रिया के उस प्रयोजन से सम्बन्धित है, जो उस क्रिया में आद्योपान्त उपस्थित है । जैसे कोई व्यक्ति अग्नि, जल, बर्तनादि ले जा रहा है तो यह ज्ञात होता है कि वह भोजन बनाने जा रहा है । यहां अन्य सभी क्रियायें भोजन बनाने के प्रयोजन से की जा रही है। व्यवहार नय-यह व्यवहारिक ज्ञान पर आधारित सर्वसाधारण का दृष्टिकोण है । इसमें वस्तुओं पर उनके मूर्त रूप में विचार किया जाता है और उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं पर जोर दिया जाता है। इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि धनपाल ने भारतीय दर्शन के सांख्य, योग, वेदान्त, न्याय-वैशेषिक, बोद्ध तथा जैन इन छः सिद्धान्तों का सम्यग् अध्ययन किया था । अन्य शास्त्र धर्मशास्त्र तिलकमंजरी में धर्मशास्त्र एवं उससे सम्बन्धित अनेक उल्लेख प्राप्त 1. .."बालदशबलनीलच्छदकलापाच्छादिताभिः... -वही, पृ. 245 2. दानं शीलं क्षमाऽचौर्य ध्यानप्रज्ञाबलानि च उपायः प्रणिधिनिं दश बुद्धबलानि वे॥ -वही, पराग टीका भाग 3, पृ. 148 3. अर्द्धदर्शनस्थितिरिव नैगमव्यवहाराक्षिप्तलोका, -तिलकमंजरी, पृ. 11 4. माधवाचार्य, सर्वदर्शनसंग्रह, पृ. 104 5. शर्मा, रामनाथ, भारतीय दर्शन के मूल तत्व, पृ. 96
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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