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________________ 162 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन - जैन ग्रन्थ निशीथ के अनुसार दुकूल वृक्ष की छाल को लेकर पानी के साथ तब तक गोखली में कूटा जाता था, जब तक उसके रेशे अलग नहीं होते थे। तत्पश्चात् वे रेशे कात लिये जाते थे। प्रारम्भ में इस प्रकार दुकूल वस्त्र का निर्माण होता था, कालान्तर में सभी महीन धुले वस्त्रों को दुकूल कहा जाने लगा। " हंस दुकल'-हंस दुकूल गुप्त-युग के वस्त्र निर्माण कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। जैन ग्रन्थ बाचारांग तथा नायाधम्मकहानो में इसके उल्लेख मिलते हैं । आचारांग (2, 15, 20) के अनुसार शक्र ने महावीर को जो हंस दुकूल का जोड़ा पहनाया था, वह इतना हलका था कि हवा का मामूली झटका उसे उड़ा ले जा सकता था। वह कलाबत्त के तार से मिला कर बना था। उसमें हंस के अलंकार थे । नायाघम्म (1.13) के अनुसार यह जोड़ा वर्ण स्पर्श से युक्त, स्फटिक के समान निर्मल और बहुत ही कोमल होता था। अंतगडदसाओ (32) में दहेज में दुकूल के जोड़े दिये जाने का उल्लेख है । कालिदास ने भी हंस चिहित दुकूल का उल्लेख किया है। बाण ने कादम्बरी में शूद्रक को गोरोचना से चित्रित हंस-मिथुन से युक्त दुकूल का जोड़ा पहने हुए वर्णित किया है। नेत्र तिलकमंजरी में नेत्र वस्त्र का उल्लेख सात बार हुआ है । गन्धर्वक ने - पाटल पुष्प के समान पाटलवर्ण के झीने एवं स्वच्छ नेत्र वस्त्र का कूसिक पहना था।' कढ़े हुए नेत्र वस्त्र के तकिये मेघवाहन के दोनों पार्श्व में रखे गये थे। मदिरावती के विशाल भवन में नेत्र का वितान खींचा गया था, जिसके किनारों पर मोतियों की माला लटक रही थी। युद्ध के प्रसंग में लाल रंग के नेत्र वस्त्र की पताकाओं का उल्लेख है।10 नेत्र वस्त्र से निर्मित कंचुक के अग्रपल्लव के हिलने से मलय 1 मोतीचन्द्र, प्राचीन भारतीय वेशभूषा, पृ. 147 2 मोतीचन्द्र, प्राचीन भारतीय वेशभूशा, पृ. 147-148 3 वही, पृ. 148 4 कालिदास, रघुवंश 17/25 5 बाणभट्ट, कादम्बरी, पृ. 17 6 तिलकमंजरी, पृ. 70, 71, 85, 164, 276, 279, 323 7 सूक्ष्मविमलेन पाटलाकुसुम पाटलकान्तिना---- नेत्रकूर्पासकेन, वही, पृ. 164 8 उभयपावविन्यस्तचित्रसूचित्रतनेत्रगण्डोपधानम्.... .... -वही, पृ. 70 9 उपरिविस्तारिततारनेत्रपटविताने, -तिलककर्मजरी, पृ०71 10 अरूणनेत्रपताकापटपल्लवितरथनिरन्तरम् -वही, पृ०85
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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