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________________ धनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें में जैन धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई, और उसने महेन्द्रसूरि से जैन धर्म की दीक्षा ली। इस कथा से निम्नलिखित तथ्यों का संग्रह किया जा सकता है (1) पिता की आज्ञा से धनपाल के अनुज शोभन ने श्री महेन्द्रसूरि का शिष्यत्व ग्रहण कर जैन धर्म में दीक्षा ली थी। (2) धनपाल ने अपने पिता के इस कृत्य से रुष्ट होकर द्वादश वर्ष पर्यन्त धारानगरी में श्वेताम्बर जैनों के आवागमन पर रोक लगवा दी। (3) कालान्तर में अपने भ्राता के सौजन्य से एवं जैन धर्म के सिद्धान्तों से प्रभावित होकर उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया एवं श्री महेन्द्रसूरि से दीक्षा प्राप्त की। तिलकमंजरी की प्रस्तावना में धनपाल ने अपने गुरु को आदरपूर्वक नमस्कार किया है । प्रभावकचरित में धनपाल की पत्नी धनश्री का उल्लेख मिलता है । प्रबन्धचिंतामणी में उसके लिए केवल ब्राह्मणी शब्द का प्रयोग हुआ है। धनपाल के विषय में एक और दन्तकथा अत्यधिक प्रचलित हुयी थी। जिसका सार यह है कि धनपाल ने जब तिलकमंजरी कथा की रचना की तो भोज ने उसमें कुछ परिवर्तन करने के लिए कहा कि अयोध्या के स्थान पर धारा, शक्रावतार के स्थान पर महाकाल मन्दिर, ऋषभ के स्थान पर शंकर तथा मेघवाहन के स्थान पर परिवर्तन कर स्वयं मेरा नाम लिख दो । इस पर स्वाभिमानी धनपाल ने कहा कि जिस प्रकार श्रोत्रिय के हाथ के दुग्धपात्र में मदिरा की एक बूंद भी गिर जाय तो वह अपवित्र हो जाता है, इसी प्रकार इम कथा में परिवर्तन करने पर यह भी अपवित्र हो जायेगी। धनपाल के कथन से क्रुद्ध होकर भोज ने तिलकमंजरी को अग्नि की भेंट कर दिया, किन्तु अपनी विदुषी पुत्री की सहायता से धनपाल ने इसकी पुनः रचना की। भोज के इस व्यवहार से अपमानित होकर धनपाल धारा नगरी छोड़कर मरुमण्डल के सत्यपुर नामक स्थान को चला गया। 1. प्रभावकचरित, पृ. 138-139; प्रबन्धचिंतामणि, 36-37 2. सूरिमहेन्द्र एवैको वैबुधाराधितक्रमः ।। यस्मामत्योचितप्रीढिकविविस्मयकृद्धचः ।। -तिलकमंजरी, पद्य 34 3. प्रभावकचरित, पृ. 139 4. प्रबन्धचितामणि, पृ. 37 5. प्रभावकचरित, पृ. 145-146 .. . .
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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