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________________ 108 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन अलंकार-योजना अलंकृत शैली धनपाल के समय में दरबारी कवियों की विशेषता थी। धनपाल के मत में कान्ति, सुकुमारता आदि स्वाभाविक गुणों से युक्त काव्य, अलंकार रहित होते हुए भी सहृदयों के हृदय को आकृष्ट करता है। धनपाल ने अलंकारों की अपेक्षा काव्य में गुणों को अधिक महत्व दिया है और गुणों में भी प्रसाद गुण को । अलंकारों में धनपाल के मत में स्वाभावोक्ति को सर्वोत्कृष्ट कहा गया है। अपने काव्य को अलंकारों की सुषमा से जगमगाने में धनपाल अत्यन्त निपुण हैं । उनके अलंकार-प्रयोग की निम्नलिखित विशेषताएं हैं (1) धनपाल शब्दालंकार एवं अर्थालंकारों के समन्वय में अत्यन्त चतुर हैं । तिलकमंजरी में सर्वत्र अनुप्रास, यमक की छटा बिखरी हुई है, तथा स्थानस्थान पर अर्थालंकारों से तिलकमंजरी का शृंगार किया गया है। (2) धनपाल को परिसंख्या अलंकार के प्रयोग में विशेष निपुणता प्राप्त है । तिलकमंजरी में इस अलंकार का प्रयोग बहुलता से किया गया है। अतः कहा जा सकता है, 'उपमा कालिदासस्य, "उत्प्रेक्षाबाणभट्टस्य," परिसंख्याधनपालस्य" । श्लिष्ट परिसंख्या का इतना चमत्कारिक प्रयोग अन्य संस्कृत काव्य में नहीं मिलता है । परिसंख्या के अतिरिक्त धनपाल को घिरोधाभास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार अत्यन्त प्रिय हैं । अतः परिसंख्या, विरोधाभास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रयोग में धनपाल की विशिष्टता है। __ (3) विशिष्ट व्यक्ति अथवा स्थान के वर्णन में धनपाल अलंकारों की झड़ी लगा देते हैं। जैसाकि अयोध्या तथा मेघवाहन के वर्णन से ज्ञात होता है । इनमें प्रायः एक के बाद एक करके सभी प्रमुख अलंकार क्रमबद्ध रूप से प्रयुक्त (4) धनपाल न केवल अलंकारों के प्रयोग में ही चतुर हैं, अपितु वे उपमान चयन में भी विलक्षण प्रतिभा का परिचय देते हैं । उनके उपमान अत्यन्त समीचीन व प्रसंगोपात्त होते हैं । वर्ण्य विषय तथा प्रसंग के अनुसार उपमान का चयन धनपाल के अलंकारों की चौथी विशेषता है। नाविक तारक के प्रसंग में 1. उज्झितालंकारामप्यकृत्रिमेणकान्तिसुकुमारतादिगुणपरिगृहीतेनांगमाधुर्येण सुकविवाचमिव सहृदयाना हृदयमावर्जयन्तीम् । -तिलकमंजरी, पृ. 71 1. प्रसत्तिमिव काव्यगुणसंपदाम्, -तिलकमंजरी, पृ. 159 2. जातिमिवालंकृतीनाम्, -वही, पृ. 159
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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