SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ श्रीमद्वाग्भटविरचित नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन (४) जिस प्रकार शिशुपालवध के प्रथम श्लोक "श्रियः पति श्रीमति शासितुं जमरा का प्रारंभ श्री शब्द से होता है, उसी प्रकार नेमिनिर्वाण के प्रथमश्लोक "श्रीनामित पदपद्मयुग्मनखाः२ का प्रारंभ भी श्री शब्द से होता है। (५) शिशुपालवध में श्यामल श्री कृष्ण जी के सुवार्गासन पर बैठने की शोभा का वर्णन जम्बूफल से सुशोभित सुमेरु पर्वत की उपमा देकर किया गया है - “साञ्चने यत्र मुनेरनुज्ञया नवाम्बुदश्यामतनुविक्षत । जिगाय जम्बूजानितत्रियः श्रियं सुमेस्थास्य तदा तदासनम् ।। इसी प्रकार का वर्णन श्यामलवर्ण वाले भगवान नेमिनाथ के जन्माभिषेक के समय सुमेरुपर्वत पर सिंहासन पर विराजमान किये जाने पर नेमिनिर्वाण में किया गया है - “मृगारिपीठेन तमालनिर्मलप्रभावितानप्रभुसङ्गशोभिना । गुरुगिरीणां शिखरान्तरापरप्ररूढजम्बूशिखरीव सोऽभवत् ।। (६) नेमिनिर्वाण में सप्तमसर्ग के रैवतक पर्वत के वर्णन पर शिशुपालवध के रैवतकपर्वत के वर्णन का प्रभाव है। बाणभट्ट का वाग्भट पर प्रभाव : (१) कादम्बरी के “अवितथफला हि प्रायो निशावसान समयदृष्टा भवन्ति स्वप्नाः५ का नेमिनिर्वाण के "स्वप्नाः सतां नहि भवन्त्यनपेक्षितार्थाः पर प्रभाव माना जा सकता है। (२) बाणभट्ट ने कादम्बरी में आश्रम के वर्णन मे जैसा वर्णन किया है, वैसा ही वर्णन नेमिनिर्वाण में भी पाया जाता है । यद्यपि इस वर्णन में शब्दसाम्य या अर्थसाम्य अकिंचित्कर है, किन्तु भावसाम्य देखा जा सकता है । हरिचन्द्र का वाग्भट पर प्रभाव : महाकवि हरिचन्द्र द्वारा विरचित धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य में जैनधर्म के पन्द्रहवें तीर्थडुर धर्मनाथ का जीवन चरित वर्णित हुआ है । धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य जैन संस्कृत काव्यों में सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य है । नेमिनिर्वाण में भी जैन धर्म के बाईसवें तीर्थहर नेमिनाथ भगवान का जीवन चरित वर्णित हुआ है । फलतः दोनों की कथावस्तु में समानता होना स्वाभाविक (२) कुछ विद्वान धर्मशर्माम्युदय की रचना नेमिनिर्वाण के बाद की मान कर धर्मशर्माभ्युदय पर नेमिनिर्वाण का प्रभाव मानते हैं । परन्तु हमारी दृष्टि में तो नेमिनिर्वाण ही १. शिशुपलक्ष, २. मिनिर्वाण, ३. शिशुपालवध,११९ . ४. मिनिर्वष, ५/५८ ५. कादम्बरी पृष्ठ २५४ ६. नेमिनिर्वण, ३/४३ ७. द्रष्टव्य-बैन साहित्य का वृहद् इतिहास भाग ६ पृट ४८९
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy