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________________ नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : अलंकार १६१ प्रथम सर्ग में बड़ी सुन्दर योजना प्रकट की है। कवि ने संसार में समुद्र का आरोप और दया में नाव का आरोप किया है । यथा - अपारसंसारसमुद्रनावं देयाद्दयालुः सुमतिर्मतिं नः । नित्यप्रियायोगकृते यदन्ते तपस्यतीवाविरतं रथाङ्गः ।। इसी प्रकार यहाँ भी देखिये - ___तपः कुठारक्षतकर्मवल्लि । यहाँ पर कर्म में वल्लिका और तप में कुठार का आरोप किया है । प्रयोग के अन्य स्थल प्रथम सर्ग - ५९ चतुर्थ सर्ग - ५ पंचदश सर्ग - ७५ विरोधाभास : जहाँ वास्तविक विरोध न रहते हुए भी शब्दों में विरोध जैसा प्रतीत होता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है । नेमिनिर्वाण में विरोधाभास अलंकार का अनेक स्थलों पर प्रयोग हुआ है । जो अत्यन्त स्वाभाविक एवं अत्यन्त सुन्दर है । तथा - अराय तस्मै विजितस्मराय नित्यं नमः कर्मविमुक्तिहेतोः । यः श्रीसुमित्रातनयोऽपि भूत्वा रामानुरक्तो न बभूव चित्रम् ।। काम को जीतने वाले उन अरनाथ भगवान को कर्ममुक्ति के लिये नित्य नमस्कार हो, जो सुमित्रा का पुत्र (लक्ष्मण की माता, अरनाथ की माता) होते हुये भी रामानुरक्त (राम में अनुरक्त, रामा स्त्री में ) अनुरक्त नही था । यह आश्चर्य की बात है। यहाँ पर विरोध की प्रतीति कितनी सुन्दर बन पड़ी है कि सुमित्रा पुत्र होने पर भी जो राम में अनुरक्त न हुआ । लक्ष्मण होने पर भी राम में अनुरक्त नहीं हुआ, यह विरोध है, क्योंकि लक्ष्मण तो राम के भक्त थे । अतः इस विरोध का परिहार करने के लिये सुमित्रा तनय अर्थात् अर तीर्थङ्कर होते हुये भी जो रामा-स्त्रियों में आसक्त नहीं हुये यह श्लेष के आध पर पर निकलता है । अन्य उदाहरण देखिये - आहारदानान्यखिलानि यच्छन्नजायताक्षीरकृतार्थितार्था । यो दानवत्वे सुरलोकभक्तः कोबुध्यते राजगतिं विचित्राम् ।। सभी प्रकार के आहार-दानों को देता हुआ भी जो याचकों को अक्षीर (दूध से भिन्न-आँखो से प्रेरित) अन्न को देने वाला हुआ और जो दानव (दान देने वाला-दनु का पुत्र १. नेमिनिर्वाण, १/५ ३. नेमिनिर्वाण, १/१८ २. वही, १/१९ ४. वही, १/६९
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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