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________________ १२८ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन लम्बी-लम्बी सांसों से कम्पित होते हुये मुक्ताहार वाली उस सुन्दरी ने रात्रि में निद्रा को प्राप्त नहीं किया । सखियों के कमनीय एवं प्रेमपूर्वक व्यवहार करने पर शून्य हृदय वाली एवं चंचल नेत्रों वाली उसने सिर के कम्पन्न (हिलाने) से अथवा सुन्दर हुँकार से उत्तर प्रदान किया । प्रत्येक रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन से प्राणों के ऊपर चले जाने पर आँखों को बन्द करती हुई मर्छा उस सुनयना की संखी की तरह वेगपूर्वक आ गई। चान्द्रं बिम्बं वृत्तवह्नयाश्मकल्पं व्यालीवासीभीषणा पुष्पमाला । चित्याकल्पं पुष्पतल्पं च तस्यास्तस्मिन्नेवाबद्धसंबद्धबुद्धेः ।। इन्दोर्दीप्त्या दत्तदाहातिरेका यद्यच्छुभं तत्र तत्रापरक्ता । सा कर्पूरं दन्तजं कर्णपूरं हारं हासं चेति सर्वं व्यहासीत् ।। उस नेमि के प्रति संलग्न चित्त वाली उसको चन्द्रमा का बिम्ब गोलाकार अग्नि के प्रस्तर खण्ड की तरह, पुष्पमाला नागिनों की तरह भयंकर और फूलों की सेज चिता के समान प्रतीत होने लगी । चन्द्रमा की कान्ति से अतिशय दाह को प्राप्त होकर वह जो-जो शुभ्र पदार्थ थे, उनसे विरक्त हो गई । उसने कपूर, हाथी दान्त से बने कर्णाभूषण, हार और हास्य सभी को त्याग दिया । रौद्र रसः रौद्र का स्थायीभाव क्रोध है । शत्रु आलम्बन ओर शत्रु की चेष्टायें उद्दीपन विभाव हैं । ओठ चबाना, शस्त्र घुमाना आदि अनुभाव तथा अमर्ष आदि संचारी भाव हैं। __राजा समुद्रविजय के पराक्रम के कारण शत्रु राजा क्रोध से उद्दीप्त हो जाते हैं। उनकी भौहें चढ़ जाती हैं वें आँखे तरेरने लगते हैं । गर्जन, तर्जन करते हैं पर उनका वश नहीं चलता, वे समुद्रविजय के पराक्रम के समक्ष झुक जाते हैं । कवि ने विरोधी राजाओं के रौद्र रूप के साथ समुद्रविजय की वीरता का भी चित्रण किया है । यथा : यदर्धचन्द्रापचितोत्तमाङ्गैरुद्दण्डदोस्ताण्डवमादधानः । विद्वेषिभिर्दत्तशिवाप्रमोदैः कैः कैर्न दघे युधि रुद्रभावः ।। राजा समुद्रविजय के बाणों से जिनका मस्तक कट गया है, जो रक्षा के लिये अपनी उद्दण्ड भुजाओं को फड़फड़ा रहे हैं तथा भक्ष्य सामग्री प्राप्त होने पर जिन्होंने (शिवा) श्रृगालियों के लिये हर्ष प्रदान किया है, ऐसे कौन-कौन शत्रुओं ने युद्ध में रूद्रभाव को नहीं धारण किया अर्थात् सभी ने किया था । श्लेष के अनुसार इस पद्य में दूसरा भी अर्थ है - जिनके मस्तक अर्ध चन्द्र से पूजित हैं जो अपनी भुजाओं से उदण्ड ताण्डव नृत्य करते हैं तथा जिन्होंने पति होने के कारण शिवा-पार्वती को हर्ष प्रदान किया है - ऐसे कौन-कौन से शत्रुओं ने युद्ध में रूद्र भाव-महादेवपने १.नेमिनिर्वण,११/८,९ २.वही, १/६१
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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