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________________ नेमिनिर्वाण की कथावस्तु १०७ तब वे शीघ्र ही आयुधशाला में गये और नेमिकुमार को देदीप्यमान नागशैय्या पर अनादरपूर्वक खड़ा देख अन्य राजाओं के साथ आश्चर्य करने लगे । ज्यों ही कृष्ण को यह सब मालूम हुआ कि कुमार ने यह कार्य जाम्बवती के कठोर वचनों से कुपित होकर किया है त्यों ही बन्धुजनों के साथ उन्होंने अत्यधिक संतोष का अनुभव किया और वह क्रोध विकृति भी संतोष का कारण बन गई । अपने स्वजनों के साथ कृष्ण ने युवा नेमिकुमार का आलिगंन कर सत्कार किया और उसके बाद अपने घर गये। घर जाने पर जब उन्हें विदित हुआ कि अपनी स्त्री के निमित्त से ही उन्हें कामोद्दीपन हुआ है तो वे बहुत हर्ष हु श्रीकृष्ण ने नेमकुमार के लिये विधिपूर्वक भोजवंशियों की कुमारी राजीमती की याचना की । उसके पाणिग्रहण संस्कार के लिये बन्धुजनों के पास खबर भेजी और स्त्रियों सहित समस्त राजाओं को बड़े सम्मान के साथ बुलाकर अपने निकट किया । इसके बाद वर्षा ऋतु में एक दिन युवा नेमिकुमार ध्वजापताकाओं से सुशोभित सूर्य के रथ के समान देदीप्यमान एवं चार घोड़ों से जुते रथ पर सवार हो अनेक राजकुमारों के साथ वनभूमि की ओर चल दिये । प्रसन्नता से युक्त राजीमती तथा नगर की स्त्रियों ने अपने प्यासे नेत्रों से जिनके शरीररूपी जल का पान किया था तथा जिसका दर्शन मन को हरण कर रहा था ऐसे नेमिनाथ भगवान उन राजकुमारों के साथ विशाल राजमार्ग से दर्शकों पर दया करते हुये के समान धीरे-धीरे गमन कर रहे थे। उपवन में पहुँचकर युवा नेमिकुमार शीघ्र ही वन की लक्ष्मी को देखने लगे वन के नाना वृक्षों की पंक्तियाँ अपनी शाखा रूप भुजायें फैलाकर नम्रीभूत हो उन पर फूलों की अञ्जलियाँ बिखेरने लगी। उसी समय उन्होंने वन में एक जगह भय से जिनके मन और शरीर काँप रहे थे जो अत्यन्त विह्वल थे, पुरुष जिन्हें रोके हुये थे और जो नाना जातियों से युक्त थे ऐसे भक्षी पशुओं को देखा । यद्यपि भगवान अवधिज्ञान से उन पशुओं को एकत्रित करने का कारण जानते थे, तथापि उन्होंने शीघ्र ही रथ रोककर अपने शब्द से मेघध्वनि को जीतते हुए सारथि से पूछा-कि ये नाना जाति के पशु यहाँ किसलिये रोके गये हैं । सारथि ने नम्रीभूत हाथ जोड़कर कहा कि हे विभो ! आपके विवाहोत्सव में जो माँसभोजी राजा आये हैं, उनके लिये नाना प्रकार का माँस तैयार करने के लिये यहाँ पशुओं को बाँधा गया है। इस प्रकार सारथि के वचन सुनकर ज्यों ही भगवान ने मृगों के समूह की ओर देखा, त्यों ही उनका हृदय प्राणी-दया से सराबोर हो गया और कुमार को वैराग्य आ गया, रस में भंग हो गया । इसके बाद नेमिनाथ भगवान का तपश्चर्या के लिये वन में प्रस्थान करना तथा केवलज्ञान की उत्पत्ति होना आदि वर्णित है । बाद में क्रमपूर्वक भगवान के समवशरण का वर्णन है । वरदत्त के पूछने पर भगवान की दिव्य ध्वनि में जीवाजीवादि तत्त्वों का विस्तृत विवेचन हुआ है । अन्त में भगवान के विहार का अनुपम वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण ने उनसे तिरसठ शलाका पुरुषों का विवरण पूछा तब भगवान ने उन सबका विस्तार से वर्णन किया है ।
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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