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________________ "नेमिनिर्वाण" का कर्ता इसी प्रकार वाग्भटालंकार के चतुर्थ परिच्छेद में श्लोक संख्या अस्सी और चौरास्सी से यह स्पष्ट है कि कवि वाग्भट को अपने आश्रय दाता चालुक्य श्री जयसिंहदेव पर अभिमान है और चालुक्य राजा के ताम्रचूड छत्र के गौरव का ध्यान है । स्थिति काल वाग्भट ने अपने काव्य तथा अपने समय के सम्बन्ध में कुछ भी निर्देश नहीं दिया है अतः अन्तरंग प्रभावों के अभाव में केवल बाह्य प्रभावों का साक्ष्य ही शेष रह जाता है । वाग्भटालंकार के रचयिता ने अपने लक्षण ग्रन्थ में नेमि निर्वाण के छठे सर्ग के "कान्तार भूमौ जुहूर्वसन्ते, और नेमि विशालनयनयोः पद्यों की वाग्भटालंकार के पद्य ४/३५, ४/३९ एवं ४/३२ में उद्धृत किया है । नेमिनिर्वाण के वरणाः प्रसूननिकरा भी वाग्भटालंकार के ४/४० वें पद्य के रूप में आया है । अतः नेमिनिर्वाण की रचना वाग्भटालंकार के पूर्व हुई. है । वाग्भटालंकार के रचयिता वाग्भट का समय जयसिंहदेव का राज्यकाल माना जाता है । प्रो० बूल्हर ने अनहिलवाड के चालुक्य राजवंश की जो वंशावली अंकित की है, उनके अनुसार जयसिंहदेव का राज्यकाल सन् १०९३-११४२ (वि०सं० ११५०-११९९) सिद्ध होता है । आचार्य हेमचन्द्र के व्याश्रय काव्य से सिद्ध होता है कि वाग्भट चालुक्य वंशीय कर्णदेव के पुत्र जयसिंह देव के अमात्य थे । अतएव नेमिनिर्वाण की रचना वि०सं० ११७१ (१११४ ई०) के पूर्व होनी चाहिए।' चन्द्रप्रभचरित, धर्मशर्माभ्युदय और नेमिनिर्वाण इन तीनों काव्यों के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञात होता है कि चन्द्रप्रभचरित का प्रभाव धर्म-शर्माभ्युदय पर है और नेमिनिर्वाण इन दोनों काव्यों से प्रभावित है । धर्मशर्माभ्युदय पर नेमिनिर्वाण का प्रभाव जरा भी प्रतीत नहीं होता है। धर्मशर्माभ्युदय "श्री नाभिसूनोश्चिरमझियुग्मनखेन" का नेमिनिर्वाण के "श्रीनाभिसूनोः पदपद्मयुग्मनखः पर स्पष्ट प्रभाव है । इसी प्रकार “चन्द्रप्रभनोभियदीयमाला नूनं से "चन्द्रप्रभाय प्रभवे त्रिसन्ध्ये तस्मै पद्य भी प्रभावित है । अतएव नेमिनिर्वाण का रचनाकाल ई०सन् १०७५-११२५ होना चाहिए। नेमि निर्वाण पर माघ के शिशुपाल वध की स्पष्ट छाया है जो छठे सर्ग से दशवें सर्ग तक देखी जा सकती है। काव्य की कथावस्तु गुणभद्र के उत्तर पुराण. तथा जिनसेन प्रथम के हरिवंशपुराण से ग्रहीत मालूम पड़ती है । अतः इससे ये अवश्य ही इनके बाद हुये होंगे। १. मिनिर्वणम्, ६/४६ २. वही, ६/४७ ३. वही, ६/५१ ४. वहीं, ७/२६ ५. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान पृ० २८३ ६.धर्मशाभ्युदय, ११ ७. नेमि निर्वाण १/१ ८.धर्मशर्मभ्युदय १/२ ९. नेमि निर्वाण १२८
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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