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________________ प्रथम अध्याय आदिपुराण की दार्शनिक पृष्ठभूमि आगम परिचय, पुराण परिचय जैन साहित्य में पुराणों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनमें भी आदिपुराण का विशेष महत्त्व है। आदिपुराण आचार्य जिनसेन स्वामी की महान् कृति है। आदिपुराण में सैंतालीस पर्व हैं जिनमें प्रारम्भ के बयालीस पर्व और तैंतालीसवें पर्व के तीन श्लोक जिनसेनाचार्य द्वारा रचित हैं। शेष पर्वो के 1620 श्लोक उनके शिष्य गुणभद्राचार्य द्वारा विरचित हैं। आदिपुराण के कुल श्लोकों की संख्या 12000 है। आदिपुराण में जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव तथा उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती का ही वर्णन है। पुराण शब्द सुनने से जन साधारण का ध्यान सनातन धर्म के अट्ठारह पुराणों की ओर केन्द्रित हो जाता है, परन्तु जैनधर्म में भी चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पुराण कहे गये हैं। इसके अतिरिक्त भी आदिपुराण की प्रस्तावना में अनेक पुराणों के नामों का उल्लेख मिलता है। इसलिए जैन साहित्य में पुराणों का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। आदिपुराण में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का सम्पूर्ण जीवन-चरित्र सुविस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थकार का उद्देश्य केवल ऋषभदेव के वर्तमान भव के साथ साथ पूर्व के दस भवों का ही सुन्दर वर्णन करना नहीं है, अपितु रोचक कथाओं के माध्यम से कहीं न कहीं दार्शनिक तत्त्वों का भी वर्णन करना है। जैन दर्शन में मुख्य रूप से दो ही तत्त्व माने जाते हैं --जीव, अजीव। सम्पूर्ण जैन दर्शन इन दो तत्त्वों पर ही आधारित हैं। आदिपुराण में कहीं सात और कहीं नौ तत्त्वों का उल्लेख है। पुराण क्या है? पुराणों का वर्णित विषय क्या है? यह उल्लेख करने से पहले आदिपुराण में वर्णित दार्शनिक तत्त्वों का जो द्वादशाङ्गी तथा द्वादशाङ्गी आगमों पर आधारित हैं। द्वादशाङ्गी में आगम क्या है और उनके रचयिता कौन है? इस विषय पर सर्वप्रथम चर्चा करेंगे।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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