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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 299
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आ.पु. 20.161
506. त.सू. - (के.मु.) 7.2 (टीका) 507. स्था. सू. 5.1.1;
दयाङ्गनापरिष्वङ्गः सत्ये नित्यानुरक्तता। अस्तेयव्रततात्पर्य ब्रह्मचर्यैकतानता।।
परिग्रहेष्वना संगो विकाला शनवर्जनम्।। 508. स्था.सू. 5.1.1 (वि.) 509. वही। 510. वही। 511. वही। 512. स्था. सू. 5.1.1 (वि.) 513. तत्स्थै र्यार्थ भावनाः पंच पंच। - त.सू. 7.3;
मनोगप्तिर्वचोगप्तिरीय कायनियन्त्रणे।
विष्वाणसमितिश्चेति प्रथमव्रतभावनाः।। 514. त.सू. (के.मु.) 7.3 (वि.) 515. त.सू. (के.मु.) 9.5 (वि.) 516. त.सू. (के.मु.) 7.3 वि. 517. वही। 518. वही। 519. क्रोधलोभभयत्यागा हास्यासंग विसर्जनम्।
सूत्रानुगा च वाणीति द्वितीयव्रतभावना:।। 520. त.सू. (के.मु.) 7.3 (वि.) 521. वही। 522. मितोचिताभ्यनुज्ञातग्रहणान्यग्रहोऽन्यथा।
संतोषो भक्तपाने च तृतीयव्रतभावनाः।। 523. स्त्री कथालोकसंसर्गप्राग्रतस्मृतयोजनाः।
या॑ वृष्यरसेनामा चतुर्थव्रतभावनाः।। 524. त.सू. (के.मु.) 7.3 (वि.) 525. वही। 526. त.सू. (के.मु.) 7.3 (वि.) 527. वही। 528. वही। 529. बाह्याभ्यन्तरभेदेषु सचिताचित्वस्तुपु।
इन्द्रियार्थेष्वना संगो नैस्संग्यव्रतभावना:।।
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