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________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप,... 239 काययोग को भी सूक्ष्म कर उसके आश्रय से होने वाले सूक्ष्मक्रियापाति शुक्लध्यान का चिन्तन करते हैं। 350 (घ) समुच्छिन्न क्रिया निवृत्ति शुक्लध्यान जब सर्वज्ञ केवली भगवान श्वासोच्छवास का भी निरोध करके अयोगी बन जाते हैं तब उनके आत्म परिणाम निष्कम्प हो जाते हैं यानि योगजन्य चंचलता नहीं रहती, वे शैलेशी दशा मो प्राप्त हो जाते हैं उस समय की आत्म प्रदेशों तथा आत्म परिणति को व्युपरत क्रियाऽनिवृत्ति शुक्लध्यान भी कहा गया है। सूक्ष्म क्रियापाति शुक्लध्यान के पश्चात् जिनके समस्त योगों का बिल्कुल ही निरोध हो गया है, ऐसे वे साधक हर प्रकार के आस्रवों से रहित होकर समुच्छिन्न क्रिया निवृत्ति नामक शुक्लध्यान को प्राप्त होते हैं । केवली भगवान उस अतिशय निर्मल ध्यान को अन्तर्मुहूर्त्त तक धारण करते हैं और फिर समस्त कर्मों के अंशों को नष्ट कर निर्वाण अवस्था को हो जाते हैं । 351 ध्यान की विधि ध्यान करने वाला साधक चित्त को एकाग्र करके एकान्त स्थानों में श्मशान में, जीर्णवन में, नदी के किनारे, पर्वत की चोटी पर गुफा में किसी मनोहर और पवित्र प्रदेश में ध्यान लगाये, वहाँ धूप न हो, अत्यधिक गर्मी और अत्यन्त सर्दी न हो, तेज वायु न चलती हो, वर्षा न हो रही हो तथा सूक्ष्म जीवों का उपद्रव न हो, जल का प्रपात न हो, और मन्द मन्द वायु बह रही हो वहाँ पर साधक को ध्यान लगाना चाहिए। 352 ध्यान करते हुए साधक पर्यंक आसन में बैठकर, शरीर को सीधा रखें, अपने पर्यंक में बायाँ हाथ रखें, हथेली ऊपर की ओर रखें, दाहिने हाथ को भी बायें हाथ पर रखें। आँखें को न अधिक खोलें, न अधिक बन्द करें। धीरे-धीरे श्वास लें। ऊपर और नीचे के दोनों दाँतों की पंक्तियों को मिलाकर रखें। फिर मन की स्वच्छन्द गति को रोके और धीरे-धीरे अभ्यास करके, मन को हृदय में, मस्तक में, ललाट में, नाभि के ऊपर अथवा किसी भी जगह रखकर, रुकावटों को सहन करके जीव- अजीव आदि द्रव्यों के यथार्थ स्वरूप का बार-बार चिन्तन करते हुए ध्यान करें 353 ध्यान में साधक न अधिक तेज श्वास लें और न अधिक देर तक श्वासोच्छ्वास को रोकें । इन्द्रियों को पूर्णरूप से वश में करके, मन को व्याकुलता रहित करके ध्यान करें। शरीर से ममत्व छोड़ने वाला साधक ध्यान
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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