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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र हस्योद्घाटन पहुंची । पंच परमेष्ठिमंत्र का शरण लेकर, महाबल कुमार को याद करती हुई और दर्शक जनता के हा - हा कार करते हुए, राजकुमारी ने बिजली की झड़प से उस जलरहित कुंएँ में झंपापात कर दिया । हृदय को विदारण करने वाला यह भयानक दृश्य दयापूर्ण हृदयवाले मनुष्यों से न देखा गया । उनके नेत्रों से चौधार आंसु बहने लगे । बहुत से मनुष्य कन्याघातक कहकर राजा की निंदा करते थे। कितनेक दुर्दैव को उपालंभ देते थे। इस तरह कुमारी के दुःख से दुःखित होकर बड़े कष्ट से रात्रि के समय लोग वापिस अपने घर गये । राजपुरुषों ने भी शहर में आकर राजसभा में विचार मग्न बैठे हुए महाराज वीरधवल को राजकुमारी के अंधकूप में स्वयं झंपापात करने की बात कह सुनायी । कुमारी के मृत्यु का समाचार सुनकर राजा सहकुटुम्ब आनंदित हुआ । वह विचारने लगाकुमारी की मृत्यु से मेरे राज्य और कुटुम्ब की रक्षा हो गयी । स्वयंवर में बुलाये हुए राजकुमारों को मैं अभी संदेश भेज देता हूँ कि किसी गुप्त रोग के कारण मलयासुंदरी की अकस्मात् मृत्यु हो गयी है; इसलिए आप लोग स्वयंवर में आने का कष्ट न उठावें। मलयासुंदरी की मृत्यु से राजकुल में शोक का कुछ भी चिह्न मालूम नहीं देता था । परंतु कभी - कभी दास दासियों का टोला मिलकर आपस में मलयासुंदरी के गुणों को याद कर खेद प्रकट करता था । शहर के भी विशेष हिस्से में यही बात मालूम होती थी । जहां तहां पर स्त्री पुरुष मिलकर कुमारी का शोक प्रकट करते थे । यद्यपि राजा के मन में शोक का लेश भी न था, तथापि रह रहकर कोई अव्यक्त वेदना उसके हृदय को मसोसती थी । उसे लोक लाज का भी भय जरूर था । राजकुटुम्ब में गतरात्रि का कुछ जागरण होने से एवं आज सारे दिन का थोड़ा बहुत खेद होने से ज्यों - ज्यों रात होती गयी त्यों - त्यों राजमहल शांत स्थिति को धारण करता गया । तथापि अकस्मात् ही यह भयानक घटना बनने से इस घटना के साथ संबंध रखनेवाले व्यक्तियों में अभी निद्रादेवी ने प्रवेश न किया था । अर्धरात्रि का समय होने आया; सारे महल में शांति मालूम होती थी, इस 79
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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