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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र घटना हूं कि आज रात को दो - तीन पहर तक अपने शयनगृह में हथियार सहित सावधान हो छिपकर पहरा दूं । यदि इतने समय तक मेरी तमाम वस्तुओं को चुरानेवाला वह दुष्ट मेरे मकान में प्रवेश करे तो उसे पकड़कर अपनी हार आदि तमाम वस्तुओं को वापिस ले लूं । उनमें से हार माताजी को देकर रात्रि के पिछले पहर में चंद्रावती की तरफ प्रयाण करूं । यह बात सुनकर राजा ने कुमार को वैसा करने की आज्ञा दी । पिता को नमस्कारकर महाबल अपने महल में चला गया। जेठवदि एकादशी के दिन अंधेरी रात्रि ने पृथ्वी पर चारों तरफ काली चादर बिछायी हुई है । अनंत आकाशमंडल में असंख्य तारे अपने मंदप्रकाश द्वारा रात्रि की शोभा बढ़ा रहे हैं । तथापि विशेष अंधकार के कारण उनके प्रकाश से जमीन पर रही हुई वस्तु स्पष्ट मालूम न होती थी । सारे शहर में शांति का सन्नाटा छा रहा था । राजमहल के चारों और किसी भी मनुष्य का संचार न था । ऐसे समय में अपने निवासभुवन में हाथ में तलवार लिये, दीपक के अंधकार नीचे सावधान हो गुप्त रीति से महाबल कुमार खड़ा है । अपने सोने के पलंग पर एक वस्त्र से मनुष्याकृति बनाकर उस पर एक चादर डाली हुई है। उस निवास भुवन के एक खिड़की के सिवा तमाम द्वार बंद है । चाहे जो हो परंतु प्राणप्रण से भी आज उस दुष्ट को पूरी शिक्षा दूंगा, इसी विचार में कुमार सावधान होकर खड़ा है । जब मध्यरात्रि का समय हुआ, उस वक्त खुली हुई खिड़की से एक हाथ ने अंदर प्रवेश किया । कुमार ने भी उसे अच्छी तरह देख लिया और वह विशेष रूप से सावधान हो गया । वह हाथ कुमार के कमरे में फिरने लगा, यह देख कुमार आश्चर्य सहित विचारने लगा । अरे! शरीर के सिवा यह अकेला हाथ क्यों दीख रहा है? कंकण आदि भूषणों से भूषित तथा सरल और कोमल होने के कारण यह हाथ किसी स्त्री का मालूम होता है। निश्चित यही स्त्री अदृश्यतया मुझे निरंतर उपद्रव करती है । किसी दिव्य प्रभाव से इसका शरीर गुप्त मालूम होता है । अगर मैं खड़ग से इसके हाथ को छेदन कर दूं तो फिर यह मेरे हाथ न आयगी और ऐसा करने से लक्ष्मीपूंज हार आदि गयी हुई वस्तुओं की भी प्राप्ति न होगी । इसलिए इस हाथ को न काटकर इसे पकड़ लेना चाहिए । 64
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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