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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र उंग में भंग ध्यानमग्न योगी के समान उसे कुमार का आना मालूम न हुआ । उसकी हालत को देखकर कुमार बोल उठा - "मृगाक्षी! इधर देखो! मैं तुम्हारे हृदय में से निकलकर तुम्हारे सन्मुख खड़ा हूं । कानों को अमृत के समान वह वचन सुनते ही अपनी गर्दन पीछे घुमाकर देखा तो उसके चित्त का चोर राजकुमार उसके सन्मुख खड़ा नजर आया। उसे देखते ही मलयासुंदरी लज्जा से विनम्र मुखकर सन्मुख खड़ी हो गयी । जिस तरह रातभर मुाई हुई कमलिनी प्रातः सूर्य का दर्शनकर विकसित हो उठती है वैसे ही कुमार को देख राजकुमारी प्रफुल्लित हो गयी । परंतु मारे लज्जा के वह कुछ भी न बोल सकी । कुमार फिर बोला"राजकुमारी मैं ऐसे भयानक स्थान में सिर्फ आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए ही आया हूं । मैं पृथ्वीस्थानपुर के महाराजा सूरपाल और महारानी पद्मावती का पुत्र हूं। मेरा नाम महाबल कुमार है । तुम्हारी नगरी की शोभा देखने के लिए गुप्त रूप से मैं अपने परिवार के साथ यहां आया हूं अर्थात् यहां की जनता और आपके पिता महाराज वीरधवल का मेरे आने का कोई पता नहीं है। __ आश्चर्यपूर्ण तुम्हारी इस नगरी को देखते हुए मैं आज संध्या समय तुम्हारे महल के नीचे आ पहुंचा, उस वक्त जन्मान्तर के प्रेम को प्रकट करनेवाला, तुम्हारे साथ मेरा दृष्टि मिलाप हुआ। इसके बाद जो कुछ हुआ है उसका हम दोनों को अनुभव ही है । इस समय ऐसे संकट पूर्ण स्थान में तुमसे मिलने के लिए मुझे तुम्हारा प्रेम ही खींच लाया है । लो, अच्छा अब मैं जाता हूं । अपने साथियों को तैयारी करते हुए छोड़ आया हूं, क्योंकि इसी समय हमें पृथ्वीस्थान पुर की ओर प्रयाण करना है । कुमार इसी समय वापिस चला जायगा यह सोचकर राजकुमारी लज्जा और मौन को छोड़कर बोली - "राजकुमार! आपको यहां से वापिस नहीं जाना चाहिए । आपके बिना मैं प्राणधारण करने के लिए असमर्थ हूं । यदि आप अतिनिष्ठुर हो मेरी अवज्ञाकर चले जायेंगे तो मैं अपने प्राणों को त्याग दूंगी। इसलिए आप मुझ पर दयाकर यहाँ ही रहें । मुझे आपके दर्शन मात्र से परम शांति प्राप्त हो जाती है । राजकुमार! मैं आपका क्या स्वागत करूँ? मैं आज से जन्म पर्यन्त आपको अपनी आत्मा समर्पण करती हूँ और यह लक्ष्मीपुंज हार 55
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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