SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र लंग में भंग पर उसकी दृष्टि जा पड़ी । कामदेव के समान सुंदर रूपवान और अपने समान वयवाले उस राजकुमार को देखकर वह सुंदरी विचार करने लगी, यह सुंदर आकृतिवाला युवक कौन होगा? यह साक्षात् कामदेव ही तो नहीं है? इसके चेहरे का तेज और सुंदर चमकीली आंखें, विशाल वक्षस्थल, लंबी - लंबी भुजायें, मूंगे के समान रक्त वर्ण के होठ, कैसे सुंदर मालूम होते हैं! सर्वांग सुंदर राजकुमार को देखकर वह युवती उसे एकटक नजर से देखती हुई, चित्राम की मूर्ति के समान स्तब्ध हो गयी। दैवयोग - से राजकुमार की दृष्टि भी अचानक ही खिड़की में बैठी हुई उस युवती पर जा पड़ी । उसे देखते ही कुछ ठसक कर वह विचारने लगा - "अहा! क्या यह कोई स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा है? यह अनुरक्त दृष्टि से मेरे सन्मुख देख रही है । यह कुमारी होगी या विवाहिता? इधर उस युवती के मन में भी यह विचार पैदा हुआ, प्रेम भरी दृष्टि से मेरे सन्मुख देखनेवाला यह युवक क्या कोई राजकुमार है? इसे देखते ही मेरा मन इतना विवश क्यों होता है? क्या यह कोई मेरे पूर्व जन्म का स्नेही होगा? इस प्रकार के अनेक विचारों में उलझी हुई उस सुंदरी ने वह स्वयं कौन और वह युवक कौन है यह जनाने और जानने के लिए, एक भोजपत्र पर दो श्लोक लिख अपने मन के साथ ही महल के नीचे खड़े हुए उस युवक की तरफ डाले । शरीर पर रोमांच धारण करते हुए राजकुमार ने नीचे पड़े उस पत्र को उठा लिया और उसे मन में पढ़ा । उस पत्र में लिखा था - कोसि त्वं? तव किं नाम? क्य वास्तव्योऽसि सुन्दर ! कथय त्वयका जहें मनो मे क्षिपतां दृशं अहं तु वीरधवल भूपतेस्तनया कनी । त्वदेक हृदया वर्ते नाम्ना मलयासुन्दरी ॥ "हे सुंदर आप कौन हैं? आपका नाम क्या है? आप कहाँ के रहनेवाले हैं? यह बतलाइए। मेरे पर दृष्टि डालकर आपने मेरा मन चुरा लिया है । मैं 51
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy