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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र बन्धन मुक्ति में प्रज्वलित हो रही है । बस इसके सिवा मेरे इस महान् शोक का और कोई कारण नहीं। पति के दुःख से दुःखित हुई चंपकमाला ने नम्रतापूर्वक मीठे वचन से कहा - "प्राणनाथ! यह दुःसह्य दुःख आपको और मुझे समान ही है । किसी - किसी भाग्यवान मनुष्यों की गोद में उत्तम बालक सोते हैं, क्रीड़ा करते हैं, मुग्धवचन बोलते हैं और कदम - कदम पर स्खलना पाते हुए माता पिता से आ चिपटते हैं । सचमुच संसार में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जिनके घर में पैरों में चुंगरुओं के रणझणाट करते हुए दो - चार बच्चे क्रीड़ा करते हों उनके जन्मकृतार्थ हैं । जिन्होंने सद्गुणसंपन्नकुलदीपक उत्तम पुत्रों को जन्म दिया है, उनको धन्य है । इस प्रकार बोलते हुए अपत्यमोह से मोहित होने के कारण रानी का हृदय गद्गद् हो गया और उसके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। परंतु कार्यकारण भाव को समझने वाली रानी चंपकमाला थोड़े ही समय में मेरे दुःख से महाराज अधिक दुःखित न हो जाय वह समझकर सावधान हो गयी और स्वयं धीरज धारणकर संतान के मोह में विशेष मोहित हुए पति को धीरज देने लगी। प्रिय देव! पुत्रादि संतति पुण्य के प्रभाव से मिल सकती है, मात्र मनोरथ करके बैठे रहने से और पुण्य कार्य में उद्यम न करने से क्या कभी कार्य की सिद्धि हो सकती है? इसलिए हमें आज से ही पुण्यवृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए । जो कार्य सत्ता या धन से सिद्ध नहीं हो सकता उस कार्य के लिए चतुर मनुष्यों को सोच नहीं करना चाहिए । परंतु उस कार्यसिद्धि में रुकावट करनेवाले विघ्नों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए । इसलिए हे प्राणेश्वर! चिंता का परित्याग करो । चिंता से विक्षिप्त चित्तवाला मनुष्य अपने इच्छित कार्य में सफलता नहीं पा सकता । हे प्राणवल्लभ! मुझे इस समय एक उपाय सूझता है और वह यह है पुत्र प्राप्ति के लिए हम दोनों को किसी देव की आराधना करनी चाहिए। महारानी चंपकमाला के समयसूचक, धैर्य गर्भित वचनों से महाराज 26
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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