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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र बन्धन मुक्ति मैं अपने वैर का बदला लूंगा । राजा और प्रजा को यों कहकर उसने आपके भाई को शीघ्र ही मार डाला और क्रम से प्रजा का संहार करने लगा । मृत्यु के भय से डरकर प्रजा अपनी जान बचाने के लिए जिधर को भागा गया उधर को पलायन कर गयी और बहुत से मनुष्यों को इसने जान से मार डाला । बस इसी कारण समृद्धि से परिपूर्ण भी यह शहर मनुष्यों से शून्य हो गया है । मैं भी भय के मारे भाग निकली थी परंतु उस समय मुझे इस राक्षस (ने) पकड़ लिया और मुझ से बोला कि भद्रे! तेरे लिये तो मैंने यह सब प्रयास ही किया है । अगर तूं यहां से कहीं भाग भी जायगी तो मैं फिर तुझे जहां होगी वहां से यहां ले आऊँगा । इसलिए तुझे इस राजमहल को छोड़कर कहीं भी नहीं जाना है और तुझे किसी भी तरह का भय न रखना है मैं सब तरह से तेरी रक्षा करूंगा । इस प्रकार कहकर उस राक्षस ने मुझे यहां पर रखा हुआ है । वह दिन के समय न जाने कहां चला जाता है, परंतु दीये बत्ती के समय वह रात को यहां ही आ जाता है । इस तरह मेरे दुःख में दिन व्यतीत हो रहे हैं। "हे पथिक! यह इतिहास सुनकर मैंने विजया रानी से कहा - कि भाभी! जो तूं इस राक्षस की कुछ भी मर्म बात बतलावे तो मैं इसे निग्रह करने का उपाय करूँ और तुझे इसके फंदे से छुड़ाकर इससे अपने भाई का बदला लूं। विजया ने कहा - "जब यह राक्षस आकर सोता है तब इसके पैर के तलिये घी से मर्दन किये जायँ तो वह बहुत जल्दी अचेतन के समान देर तक महानिद्रा में पड़ा रहता है । उस समय अगर आप कुछ कर सकते हैं तो अपनी शक्ति को अजमाना चाहिए । इसके सिवा इस राक्षस को निग्रह करने का अन्य कोई उपाय नहीं है । इसमें एक यह भी बात है स्त्री के हाथ से तलिये मर्दन करने से उसे वैसी निद्रा नही आती जैसी कि पुरुष के हाथ से मसलने से आती है । परंतु चरण स्पर्श करने से पहले अगर उसे यह मालूम हो जाय कि यह पुरुष है तो वह अपना पैर भी न छूने देगा और जान से मार डालेगा। इस प्रकार शहर के उज्जड़ होने का कारण अपनी भाभी के मुख से सुनकर मैं किसी उत्तम साधक की खोज में फिरता था । इतने में ही अकस्मात्
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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