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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र बन्धन मुक्ति सुनाओ; इस नगर के शून्य होने का क्या कारण है? विजयचंद्र बोला इस नगर को मनुष्यों से शून्य देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ । देव ऋद्धिसमान शहर को आज श्मशान सरीखा देखकर मैं सहसा स्तब्ध हो गया । अनेक प्रकार के संकल्प विकल्प उठे; परंतु मन का समाधान न हुआ। अंत में उत्साह और हिम्मत का सहारा ले मैंने अपने नगर के उज्जड़ होने का कारण जानने का निर्णय किया । मैं नगर के चारों तरफ फिरने लगा, तथापि मुझे अपने सिवाय कोई मनुष्य नजर नहीं आया । फिर मैंने राज महल में प्रवेश किया, वहाँ पर मेरे बड़े भाई जयचंद्र की विजया नामक पत्नी अकेली नजर आयी । मुझे देखते ही वह गद् गद् हो उठी और दौड़ी हुई मेरे सन्मुख चली आयी । मुझे बैठने के लिए आसन देकर वह अश्रुपूर्ण नेत्रों से रोने लगी । मैंने उसे धीरज दे नगर के उज्जड़ होने का कारण पूछा । विजया ने कहा - "कुछ समय पहले लाल वस्त्र धारक और एक एक मास के उपवास करने वाला यहाँ पर एक तपस्वी आया था । उसके तप के कारण शहर जनों की उस पर खूब भक्ति हो गयी । आपके बड़े भाई ने एक दिन महीने के उपवास का पारणा करने के लिए उसे निमंत्रण दिया, वह भी राज निमंत्रण को स्वीकारकर महल में जीमने के लिए आया । उसके पारणे की सर्व सामग्री तैयार करके उसे जीमने बैठाया गया और महाराज की आज्ञा से उसे भोजन करते समय मैं पंखा करने लगी । नवीन यौवन, सुंदर रूप और शृंगारित मेरे शरीर को देखकर उस पाखंडी तपस्वी का मन विचलित हो गया। सचमुच ही तपस्वियों का मन भी सुरूपा स्त्रियों को देखकर चलायमान हो जाता है, इसी कारण वीतराग देव ने योगी पुरुषों को स्त्रियों के सहवास से दूर रहने का फरमान किया है । यद्यपि यह बात एकान्त नहीं है कि योगी और तपस्वियों का मन विचलित हो ही जाय, तथापि तत्त्व ज्ञान में पूर्णतया प्रवेश न करने वाले, अज्ञान कष्ट करने में ही आत्मकल्याण समझने वाले या उस मार्ग में प्रथम ही आनेवाले अज्ञानी मनुष्यों के लिए ऐसा बनाव बनना सुलभ है। सत्ता में रहे हुए कितनेक कर्मों का ऐसा स्वभाव है कि निमित्त पाकर उदय 18
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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