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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र निर्वाण - प्राप्ति निर्वाण - प्राप्ति मलयासुन्दरी को राक्षसी का कलंक दिये बाद सन्दूक में से बाहर निकालकर सूरपाल राजा ने कनकवती की ताड़ना तर्जनाकर उसे देश निकाले की शिक्षा दी थी । स्त्री जाति होने के कारण उसे प्राण दंड की शिक्षा न दी गयी। अब वह अपने दुष्कर्मों से प्रेरित हो देश देशान्तरों में भटकती हुई दुःखित अवस्था में दैववशात् आज ही कहीं से सागर तिलक शहर में आ पहुँची है। किसी कार्य प्रसंग से वह सन्ध्या के समय शहर से बाहर उसी प्रदेश में गयी जहाँ पर महातपस्वी राजर्षि महाबल ध्यान लगाये खड़ा था। महाबल मुनि को देखते ही उसने पहचान लिया । अब वह दुष्ट हृदया स्त्री मन में विचारने लगी "यह क्या ? यह तो शूरपाल राजा का राजकुमार महाबल मालूम होता है, क्या यह साधु बन गया है ! यह तो मेरे तमाम दुराचरणों को जानता है । यदि इसने मेरे जीवन की घटनायें यहाँ पर किसी के सामने प्रकट कर दी तो इस शहर में भी मेरी दाल गलनी मुश्किल हो जायगी । फिर तो मुझे यहाँ रहने तक को स्थान भी न मिलेगा। लोग तिरस्कार पूर्वक मुझे शहर से बाहर निकाल देंगे । सच कहा है "पापा सर्वत्र शंकिता" पापी प्राणी सब जगह अपने पाप से शंकाशील ही रहता है; मुझे इस वक्त कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे मेरे दुश्चरित्र किसी को भी मालूम न हो सकें । इसी प्रकार के विचार करती हुई और वहाँ पर चारों ओर गौर से देखती हुई वह वापिस शहर में आ गयी। ___करीब डेढ़ पहर रात बीत चुकी है। चारों और घोर अन्धकार छाया हुआ है । सारा शहर निद्रादेवी की गोद में पड़ा सो रहा है, इसी कारण शहर भर में सन्नाटा छा रहा है । रास्ते सुन सान पड़े हैं। ऐसे मानव संचार रहित समय में एक स्त्री इधर - उधर देखती हुई हाथ में एक जलती हुई लकड़ी लिए शहर से बाहर 234
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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