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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःखों का अन्त धिक्कारने लगी और उसने यह प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक मैं अपने प्राणप्रिय पतिदेव के दर्शन न करूँगी तब तक अन्न जल ग्रहण न करूँगी । महाबल का सौन्दर्य तेज और साहस देख उस पर प्रसन्न हुए प्रजा के अनेक प्रधान पुरुषों ने दुःखित हो राजा के पास जाकर प्रार्थना की- "राजन् ! यह महान् अन्याय हो रहा है" राख के बहाने से ऐसे निरपराधी परोपकारी उत्तम पुरुष को पशु के समान मार डालना यह बात किसी तरह भी योग्य नहीं है । "ऐसा अन्याय करने की अपेक्षा उसे जीवित ही अपने देश को जाने देने की आज्ञा देना विशेष योग्य है।" राजाबोला - "प्रजाजनो ! इस पुरुष के जीवित रहते हुए यह स्त्री तो मेरे सन्मुख भी नहीं देखती। और इस स्त्री के बिना मेरे चित्त को शांति नहीं होती। मैं इस तरह दोनों तरफ से संकट में पड़ा हूँ। इसलिए मेरे पास तुम्हारे लिये कोई उत्तर नहीं । राजा का जीवा नामक प्रधान बोला - भाइयो ! इस बात में तुम्हें पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है । अगर सिद्धराज मरता है तो मरने दो। क्या उसके लिए हम राजा को संकट में पड़ा देख सकते हैं ? मंत्री के शब्द सुन निराश होकर वे वापिस लौट आये । परन्तु राजा और मंत्री की ओर से उनके हृदय में घृणा और तिरस्कार पैदा हो गया। श्मशान भूमि में एक स्थान पसन्दकर महाबल ने राजपुरुषों को वहाँ पर चिता बनाने की आज्ञा दी । उन्होंने शीघ्र ही बहुत-सी लकड़ियें लगाकर खूब ऊँची चिता रच दी | महाबल चिता के बीच में बैठ गया और उसने अपने चारों और खूब लकड़ियाँ लगाने के लिये सूचना कर दी । उस समय चिता के चारों तरफ राजपुरुष इस आशय से कि वह चिता से निकल कर कहीं भाग न जाय सक्त पहरा दे रहे थे । चिता ठीक हो जाने पर उसमें अग्नि चेतायी गई । यह देख लोगों के हृदय में भी दुःखाग्नि सिलग उठी । चिता खूब जल उठने पर भी उसके अन्दर से महाबल का किसीने सीत्कार तक भी न सुना । इससे लोग उसके अनन्य धैर्य की प्रशंसा करने लगे । जब चिता संपूर्ण जल चुकी तब राजपुरुषों ने वापिस आकर राजा को महाबल के चिता में भस्म होने का सारा वृत्तान्त कह सुनाया । उस रात को कंदर्प और मंत्री जीवा के सिवा प्रायः नगर के तमाम लोगों को सुख से निद्रा न आयी । 182
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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