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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःखों का अन्त है । मैं इसका विषापहारकर अवश्य ही इसे आराम कर दूंगा आप इसे ही मुझे दे देना । यह सुन राजा स्तब्ध - सा हो गया । उसे कुछ भी उत्तर देना न सुझा। वह कुछ देर सोचकर बोला - अच्छा ऐसा ही सही, एक काम हमारा बतलाया हुआ और कर देना फिर हम तुम्हें इस स्त्री को ही दे देंगे । महाबल ने यह बात भी मंजूर कर ली । राजा महाबल को साथ ले मलयासुन्दरी के पास आया। इस समय मलयासुन्दरी के सारे शरीर में विष व्याप्त हो चुका था और वह गाढ मूर्छा में अचेतन हो पड़ी थी। अपनी प्रिया की यह दुर्दशा देख महाबल का हृदय भर आया । उसने बड़ी महेनत से अपने अश्रु प्रवाह को रोका। यह राजा से बोला - राजन् ! इसके शरीर में तो श्वासोश्वास की क्रिया भी मालूम नहीं होती, तथापि मैं अपना प्रयोग शुरु करता हूँ। आप यहाँ पर सुगन्धीवाला जल छिड़कवाकर तमाम मनुष्यों को बाहर चले जाने की आज्ञा करें । महाबल ने उस जगह को पवित्र कराकर वहाँ पर एक मंडल बनवाया और फिर राजा आदि सबको बाहर बैठ जाने की आज्ञा दी। एकाकी महाबल ने विष उतारने का प्रयोग शुरु किया । उस मण्डल का मंत्रार्चन से विधि पूराकर महामंत्र का स्मरण करके उसने अपने पास से एक विषापहारक मणि निकाला । उसे स्वच्छ जल से धोकर वह पानी मलयासुन्दरी के नेत्रों पर छिड़का । उस पानी की असर से धीरे धीरे उसके नेत्र झबकने लगे। फिर उसने वह पानी उसके मुख पर छिड़का इससे धीरे - धीरे उसका श्वासोश्वास गति आ गति करने लगा। फिर उसने मणिधौत जल उसके सारे शरीर पर छिड़का और कुछ उसके मुँह में भी डाला । ऐसा करने से मलयासुन्दरी को धीरे - धीरे होश आया। वह कुछ देर बाद महाबल के आनन्द के साथ बैठी हो गयी। अपने पास महाबल को बैठा देख उसके हर्ष का पार न रहा । वह एकदम उससे भेट पड़ी और हर्ष के आँसु बहाती हुई बोल उठी- प्रियतम ! आप उस अन्धकूएँ से किस तरह निकले ? महाबल - "प्रिये ! जब राजा ने मेरे मँचकी रस्सी काट दी थी तब मैं मँचसहित वापिस कुएँ में गिर पड़ा था । मंचिका पर बैठा होने के कारण मुझे 178
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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