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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सुख के दिन प्रसंग आ जाने पर मैं तुम्हें पुरुष रूप धारण करने की ये गुटिकायें दे जाता हूं । आम के रस में घिसकर तिलक करने से स्त्री का पुरुष रूप बन जाता है । इन गुटिकाओं को हर वक्त संभालकर अपने पास रखना । प्यारी! मैं स्वयं तुम्हारा वियोग सहने के लिए असमर्थ हूं, परंतु क्या किया जाय! कुलीन पुत्रों का पिता की आज्ञा पालन करना परम कर्तव्य है । अतः प्रिये! तुम मुझे प्रसन्न होकर समर के लिए विदा करो। पति की आज्ञा से विवश हो अपने दिल को मसोसती हुई मलयासुंदरी मंद स्वर से बोली- "स्वामिन्! इच्छा न होने पर भी आपकी आज्ञा को शिरोधार्यकर मैं यहां ही रहती हूं । आप जल्दी इतना कहते हुए उसका कंठ भर आया । वह आगे कुछ न बोल सकी । आंखों से गालों पर मोती से आंसु ढलक पड़े। यह देख कुमार ने उसे छाती से लगा लिया और प्रेम से उसका मुख चूम लिया। प्रेमी हृदयवाले राजकुमार को भी अपनी प्राणप्यारी से जुदा होने में बड़ा दुःख हुआ । उसकी आंखों भर आयी तथापि वह कठिन मन कर रुमाल से आंखें पोंछता हुआ महल से बाहर निकल गया । तमाम सेना तैयार होकर खड़ी थी। महाबल अपने घोड़े पर सवार हो सेना के साथ पल्लीपति पर चढ़ाई करने के लिए सीमा प्रदेश की ओर चल पड़ा। कनकवती अपने मकान में बैठी हुई अपने मलीन हृदय के अनुसार विचार तरंगों में गोते खा रही है । मलयासुंदरी को किस तरह कष्ट में डालूं? कोई उपाय नहीं सूझता कि जिससे उसे संकट में डालकर अपने चित्त को शांत करूं । न जाने क्यों उसे देखकर मेरे दिल में दाह पैदा होता है । मैं जरूर मौका पाकर उसे संकट में डाल अपने कलेजे को ठंडा करूंगी । इन्हीं विचारों की उधेड़बुन में उसे महाबल के युद्ध में जाने का समाचार मिला । अब मलयासुंदरी को अकेली रही देख उसे बड़ी खुशी हुई । उसने सोचा महाबल के यहां रहते हुए मेरा कोई भी उपाय काम न आ सकता था। यह ठीक हुआ मलयासुंदरी अकेली रह गयी । यदि महाबल के परोक्ष में भी मैं किसी उपाय से इससे बदला न ले सकी तो फिर मेरे लिये कोई भी ऐसा सुअवसर नहीं मिल सकता । यह सोच वह शीघ्र ही 143
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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