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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा बोलती हुई कोपायमान हुई देवी आकाश से नीचे उतरी और कपाली योगी को केशों से पकड़कर ऊपर उछाल उसने उस दहकते हुए अग्नि कुंड में फेंक दिया। धैर्यवान होने पर भी मैं उस देवी की क्रूर और भयंकर आकृति देख शोभित हो गया । देवी ने एक नागपाश से मेरे हाथ बांध लिये और ऐसी सुंदर आकृतिवाले कुमार को मारना ठीक नहीं यों कहकर मेरा पैर पकड़ वह देवी मुझे आकाश मार्ग से ले चली । यहां आकर इस वटवृक्ष की शाखा में मेरे दोनों पैर बांधकर वह आकाश में चली गयी । मैं लटकता रह गया, वह चोर का मुर्दा भी वहां से उड़कर फिर यहां ही आ लटका । लोगों ने गर्दन घुमाकर उस चोर के मृतक की तरफ देख कर कहा - 'अरे! यह मृतक तो अक्षतांग है, फिर देवी ने यह अशुद्ध है, ऐसा क्यों कहा होगा? राजा ने कुछ देर विचारकर मस्तक हिलाते हुए कहा - हां देवी का कहना ठीक था, जाकर देखो! उस स्त्री का टूटा हुआ नाक इसके मुख में होना चाहिए । और इसी कारण देवी ने इस मृतक को अशुद्ध बतलाया । पास में जाकर देखने से मालूम हुआ सचमुच ही उस मुर्दे के मुंह में उस स्त्री के नासिका का अग्रभाग था । महाबल खेदपूर्वक बोल उठा - अहा मुझे भी यह बात मालूम नहीं रही । वह घटना ही मैंने योगी को नहीं सुनायी । व्यर्थ ही बिचारे योगी के प्राण गये और उसका कार्य भी सिद्ध न हुआ । राजा बोला - बेटा! खेद न करो। होनहार होकर ही रहती है। आगे बोलो तुम्हारे हाथों पर बंधा हुआ नागपाश किस तरह छूटा? महाबल - पिताजी! उस सर्प की पूंछ इधर उधर हिलती हुई मेरे मुंह के आगे आ गयी । उस पूंछ को रोष में आकर मैंने अपने दांतों से ऐसी दबायी कि जिससे वह सांप धीरे - धीरे मेरे हाथों से ढीला होकर नीचे जा पड़ा । विषापहारी मंत्र और औषधी के प्रभाव से मेरे शरीर में उसका जहर न चढ़ा । ऐसे असह्य दुःख में रात्रि के अंतिम दोनों पहर मैंने बड़े कष्ट से बिताये । इस समय आपने आकर मेरा संकट दूर किया । यही मेरी सारी राम कहानी है। कुमार का पूर्वोक्त चमत्कारि वृत्तांत सुन आश्चर्य और दुःख का अनुभव करते हुए शहर के प्रधान नागरिक बोल उठे - कुमार! धन्य है आपको! आपने 132
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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