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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा लूटनेवाला लोहखुर नामक चोर है । आज से दूसरे दिन पहले राजपुरुषों ने छल प्रपंच से उसे पकड़कर राजा के पास हाजिर किया । राजा ने इसे क्रोध में आकर इस बड़ की शाखा से बंधवाकर मरवा डाला । मैं उसकी प्रिय स्त्री हूँ। इसी दुःख से मैं रुदन करती हूं । जिस दिन इनकी मृत्यु हुई उस दिन ही सुबह मैं इसे मिली थी। और पत्नी होकर रही थी। थोड़े ही समय में इसने जो मुझे प्रेम किया था वह अभी तक मेरे हृदय में खटकता है । सत्पुरुष! आप कोई ऐसा उपाय करें जिससे मैं उसके मुख पर चंदन का विलेपन करूँ।" उस स्त्री के करुणाजनक वचनों से मेरा हृदय - द्रवित हो गया । मैंने उसे कहा - तूं मेरे कंधों पर चढ़कर तुझे उचित लगे वैसा कर । वह स्त्री उत्कंठा पूर्वक मेरे कंधों पर चढ़ कर, उस शव की गर्दन में हाथ डालकर, ज्यों उसका आलिंगन करने लगी त्यों ही उस मृतक ने अकस्मात् अपने दांतों से उसकी नासिका पकड़ ली । वह दुःख से रुदन करती हुई कांपने लगी । जब उसने नासिका छुड़ाने के लिए पीछे को जोर लगाया तब मजबूत पकड़ी हुई होने के कारण वह मुर्दे के मुख में ही टूट गयी । यह आश्चर्य देख मुझे हंसी आ गयी । क्योंकि जिस चोर के प्रेम के लिए वह स्त्री रोती थी और जिसे आलिंगन करने के लिए अधिक उत्कंठा थी, उसी चोर के मृतक ने उसका नाक काट दिया । मुझे हंसता देख अकस्मात् उस मृतक के मुख से यह शब्द निकले - महाबल मेरा चरित्र देख कर तूं किसलिए हंसता है? कुछ समय के बाद तूं भी मेरे समान इसी वटवृक्ष की शाख पर लटकाया जायगा, अगली रात्रि में ही तेरे ऊंचे पैर और नीचा मस्तक करके तुझे यहां पर बांधा जायगा । पिताजी! उसके यह शब्द सुनकर निर्भीक होने पर भी मेरे हृदय में कुछ भय पैदा हुआ । महाबल के मुख से यह कथन सुन वहां पर बैठे हुए राजा आदि तमाम लोग विस्मय पाकर बोल उठे - कुमार! बड़ा आश्चर्य है, क्या कभी मुरदे भी कुछ बोलते हैं? पिता की तरफ देख कुमार बोला – पिताजी! आपका कहना सच है, मुरदा नहीं बोल सकता, परतु मुरदे के मुख में प्रवेशकर कोई व्यंतर आदि देव ही बोल सकता 127
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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