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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा समान होकर किसी स्नेही के जैसे वह सर्प उसका मुख देखने लगा । बहुत समय तक हाथ में रखने पर भी उस भयंकर सर्प ने मलयासुंदरी को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाया। इससे उसकी सत्यता के लिए उपस्थित जनता खुशी होकर उच्चस्वर से निर्दोष, निर्दोष! पुकार कर तालियें बजाने लगी । मलयासुंदरी के हाथ में पाले हुए सर्प के समान रहे हुए उस भीमकाय सर्प ने अपने मुख से एक दिव्यहार उगला और धीरे से उसके गले में डाल दिया। यह आश्चर्य देख तमाम लोग विचारशून्य हो गये । अहा! यह कैसा आश्चर्य! राजा ने उस हार को पहचान लिया और वह बोल उठा - "अहो! यही वह लक्ष्मीपूंज हार है, जिसकी खोज के लिए महाबल कुमार गया है । तमाम मनुष्य एक दूसरे के सामने देखने लगे । इतने ही में उस सांप ने ऊपर फणा उठाकर अपनी जीभ से उस परीक्षा देनेवाले युवक का मस्तक चाटकर, उसके मस्तक पर लगे हुए तिलक को मिटा दिया। तिलक के मिटते ही वह नवयोवना स्त्री बन गयी । सर्प उसके मस्तक पर अपनी फणाओं को छत्राकार में विस्तारितकर आनंद से झूमने लगा । इस आश्चर्य को देखकर तमाम लोगों के छक्के छूट गये। किसी के भी मुंह से कुछ शब्द न निकला । वे भयभीत हो स्तब्ध से रह गये। इस चमत्कार को देख भय से कंपित हो, महाराज सूरपाल बोला - 'अरे! मैंने मूर्खता में आकर यह कैसा अयोग्य कार्य किया! जनता और रानी के मना करने पर भी मैंने इस दिव्य पुरुष की ऐसी भयंकर परीक्षा लेकर महाअनर्थ पैदा किया है । यह सर्प कोई साधारण सर्प नहीं है; परंतु कोई देव या दानव सर्प का रूप लेकर आया मालूम होता है । अथवा इस सत्पुरुष की सत्यता के कारण यह शेष नाग ही इसकी सहायता करने के लिए आया हो, या इस मंदिर का अधिष्ठाता धनंजय यक्षराज ही प्रकट हुआ हो यह अनुमान होता है । इस घटना का कुछ परमार्थ समझ में नहीं आता । मुझे इनकी आराधना करनी चाहिए । क्योंकि भक्ति से ही देवता स्वाधीन या अनुकूल होता है । यह सोचकर राजा ने पुष्प और धूप मंगाकर उस नाग देव की पूजा की और हाथ जोड़कर नम्रता से कहा 122
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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