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________________ कठिन परीक्षा श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा न दुःख में मन धैर्य तजे कभी, न सुख में वह हर्ष भजे कभी। न सतसे जिसका पथ अन्य है, जगत में वह मानव धन्य है ॥ पुत्री और जमाई का पता न लगने से महाराज वीरधवल के दुःख का पार नरहा । उन्होंने घुड़सवार और पैदल सिपाही उन दंपती की खोज में चारों तरफ दौड़ाये, किंतु दुर्दैववश वे फिर फिराकर जैसे गये थे वैसे ही वापिस आये । इससे राजा वीरधवल को तमाम संसार सूना मालूम होने लगा । कल ही उनके दुःख का अंत आया था आज फिर उन पर यह नया दुःख आ पड़ा । वे पुत्री और जमाई के वियोग जन्य दुःख से दुःखित होकर मुर्छित से हो गये । इस दुःख को दूर करने में मंत्री - सामंतों की भी बुद्धि कुछ काम न करती थी । कुमारी की धायमाता वेगवती ने हाथ जोड़ विनय पूर्वक राजा को धीरज देते हुए कहा - 'महाराज! आप धीरज धारण करें, कु - विकल्प करने से काम न चलेगा; कदाचित वे किसी प्रयोग से पृथ्वीस्थानपुर चले गये हों क्योंकि वहां पहुंचने की बहुत ही जल्दी और उत्सुकता मालूम होती थी । इसीलिए किसी आदमी को पृथ्वीस्थानपुर को भेजकर यह तमाम समाचारं महाराज सूरपाल को जनाना चाहिए । यदि वहां पर वेन भी पहुंचे होंगे तो पुत्र वात्सल्य से दुःखित हो वे भी आपके समान सर्वत्र खोज करावेंगे। यह बात सुन राजा वीरधवल धैर्य धारणकर वेगवती की बुद्धि की प्रशंसा करने लगा । उसने देश देशांतरों में उनकी खोज करने के लिए राजपुरुष भेजे और अपने मलयकेतु नामक राजकुमार को पृथ्वीस्थानपुर महाराज सूरपाल के पास भेजा। 112
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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