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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर 'बेटी मलया! सच कह इस घटना का क्या रहस्य है? क्या सचमुच ही यह देवकर्तव्य है या कुछ बुद्धि प्रयोग द्वारा रचा हुआ अन्य प्रपंच है?" मलया - स्वामिन्! मेरे गुप्त रहस्य को जाननेवाली और माता से भी बढ़कर मुझ पर अतिप्रेम रखनेवाली यह मेरी धायमाता है; इसलिए आप जरा भी संकोच न रखकर इस मेरी धाय वेगवती के समक्ष तमाम वृत्तांत सुनायें, यह उसे जानने की बड़ी उत्सुक है । मलयासुंदरी के आग्रह से महाबल ने वेगवती के समक्ष अपना वृत्तांत सुनाना प्रारंभ किया - 'भट्टारिका देवी के मंदिर से अपने - अपने कार्यार्थ जुदे हुए थे वहां तक का वृत्तांत वेगवती को सुनाकर उसके बाद का हाल मलयासुंदरी को उद्देशकर महाबल कहने लगा - "प्रिये तुमसे जुदा होकर मैंने तुम्हारे नामांकित अगुंठी को एक घास के पूले में देकर वह पूला हाथी को खिला दिया। फिर स्मशान की तरफ जाकर सिद्धज्योतिषी के वेष द्वारा राजा का बचाव किया और दूसरे दिन संध्या का बहाना ले और राजा के पास से कुछ द्रव्य लेकर राजमहल से चला गया । बाजार में जाकर उस द्रव्य से कुछ आवश्यक बढ़ई के हथियार, कपूर, कस्तूरी चंदन, रंग और वस्त्रादि खरीदकर मैं भट्टारिका देवी के मंदिर में गया । वहां पर जो काष्ठफाली देखी थीं। उन्हें छोलकर खूब रमणीय बनाया। उनके अंदर उर्ध्वभाग में यंत्र प्रयोग वाली एक कीलिका लगायी इस समय एक संदूक लेकर वहां पर कितनेक चोर आ पहुंचे, उस संदूको एक चोर सहित मंदिर के पीछे सुरक्षित रखकर बाकी के तमाम चोर वापिस शहर की ओर चले गये । बढई के हथियार और अन्य वस्तुएँ एक जगह छिपाकर चोर की संज्ञा से उस चोर को बुलाता हुआ मैं उसके पास गया । मुझे भी चोर समझकर उस लोभी चोर ने मुझसे प्रार्थना की, मैं इस संदूक का ताला नहीं तोड़ सकता; इसलिए कृपाकर किसी तरह आप इसका ताला खुलवा दीजिए । मैंने उसका ताला खोल दिया । उसने संदूक में से सार सार वस्तुएँ निकालकर एक पुटलिया बांधली । उस सत्त्व हीन चोर ने मुझे फिर से कहा हे महानुभाव! यदि मैं यहां से चला जाऊंगा तो मेरे पीछे पैर पहचानते हुए चोर या राज पुरुष मुझे पकड़ लेंगे, 103
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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