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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर मृत्यु के मुंह से बचाया था । उस समय सिद्ध ज्योतिषी के सिवा मलया सुंदरी जीवित है; अन्य किसी के इस वचन पर राजा को विश्वास आना अशक्य था । मलयासुंदरी को वैसी ही दशा में महाराज वीरधवल को सुपूर्दकर देना यह भी उस अकेले युवक के लिए हितकर न था और वैसा करना मलयासुंदरी के लिए प्रतिष्ठा या गौरव बढ़ानेवाली बात न थी । इत्यादि अनेक बातों पर पूर्वापर विचारकर समयानुसार उचित समझकर ही राजकुमार ने सिद्धज्योतिषी का रूप धारण किया था । अपना वह प्रपंच प्रकट न हो या उस परिस्थिति में रहने से राजकुमारी का पाणिग्रहण करना कठिन होगा इस कारण या वह स्वयंवर मंडप में से गुम होकर और दिव्य प्रभाववाली गुटिका के प्रयोग से अपना रूप परिवर्तन कर वीणा बजानेवाले के वेष में मंडप में आ बैठा था । दूसरे अन्य किसी रूप में उसे सभा में स्थान मिलना मुश्किल था । तथा उसने राजकुमारी के साथ प्रथम से ही यह संकेत भी किया हुआ था कि जब मैं वीणा बजाऊँ तब तुम यंत्र प्रयोग से लगायी हुई अंदर की कील को खींच लेना । इससे स्तंभ की दोनों फाड़ें स्वयं खुल जायगी । इत्यादि कारणों से उसे वीणा वादक का वेष धारण करना पड़ा था । साथ में कुछ भी परिवार न होने के कारण अनेक राजकुमारों से भरे हुए स्वयंवर मंडप में एकाकी असली रूप में प्रकट होना योग्य भी न था । मलयासुंदरी को देखकर सारी राजसभा आश्चर्य में पड़ गयी । उसके शरीर पर कपूर, चंदन, कस्तूरी आदि सुगंधित पदार्थों का विलेपन किया हुआ था । सुंदर वस्त्र और दिव्य अलंकार पहने हुए थे । उसके वक्षस्थल पर लक्ष्मीपूंज हार शोभ रहा था । मुख में पान का बीड़ा और दाहिने हाथ में वरमाला धारण की हुई थी । मलयासुंदरी को अकस्मात् इस अलंकृत अवस्था में देख महाराज वीरधवल और रानी चंपकमाला के हर्ष का पार न रहा । महाराज वीरधवल हर्ष के आवेश में राजकुमारी के नजदीक आ उत्सुकता से पूछने लगा - 'प्यारी, पुत्री मलया । तूं इस काष्ठ स्तंभ में कब और किस तरह आ गयी थी ? शुभाशुभ कर्म के परिणाम को जाननेवाली और इसी कारण पिता को नहीं परंतु अपने ही अशुभकर्म को दोष देनेवाली मलयासुंदरी ने पिता की ओर 97
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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