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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर इस तरह कष्ट उठाने वाले संसार में विरले ही मनुष्य होते हैं । इस प्रकार जब राजा सिद्धज्योतिषी की मन ही मन प्रशंसा कर रहा था ठीक उसी समय स्तंभ की तलाश में नगर से बाहर भेजे हुए राजपुरुष वहां पर आ पहुंचे । और राजा से हाथ जोड़कर कहने लगे - "महाराज! आप की आज्ञा पाकर स्तंभ की शोध में हम शहर से बाहर गये थे, वहां पर तलाश करते हुए दरवाजे से बायी तरफ किले के कोने में विचित्र चित्रों से चित्रा हुआ एक महान् स्तंभ सीधा खड़ा देखने में आया है । यह बात सुनते ही सिद्ध पुरुष के ज्ञान की प्रशंसा करता हुआ महाराज वीरधवल सिद्ध ज्योतिषी और उन राजपुरुषों को साथ ले नगर से बाहर स्तंभ के पास आया । उस विचित्र काष्ट स्तंभ को देखकर सब लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ । वे सबके सब आँखें फाड़कर उस स्तंभ को देखने लगे। कितने एक प्रधान पुरुष उस स्तंभ को हाथ लगाकर देखने के लिए उत्सुक हुए, परंतु सिद्धज्योतिषी ने शीघ्र ही आगे आकर वैसा करने से उन्हें रोक दिया, और कहा - 'बिना स्नान किये यदि कोई भी मनुष्य इस स्तंभ को हाथ लगायगा तो राजकुल की कुलदेवी कोपायमान हो जायगी। सिद्ध ज्योतिषी के कहने से राजा आदि तमाम प्रधान पुरुष पीछे हट गये । अब स्नानकर पुष्पादि पूजा की सामग्री मंगवाकर सिद्धज्योतिषी ने स्वयं स्तंभ की पूजा प्रारंभ की । उसने पद्मासन लगाकर ध्यानस्थ के समान बैठ हुंकार आदि मंत्र का जाप शुरू किया। कुछ देर बाद गायन और नृत्यादि संगीत प्रारंभ करवाया। इस प्रकार लगभग डेढ़ प्रहर दिन चढ़ने तक पूजन विधि चलता रहा । इसके बाद चार बलवान पुरुषों को स्नान कराकर उनके गले में सुगंधित पुष्पों की माला पहनाकर उनसे वह स्तंभ उठवाकर राजा आदि तमाम मनुष्यों के साथ सिद्ध ज्योतिषी नगर की तरफ चल पड़ा । स्तंभ के आगे नाच और गान हो रहा था; बंदीजन जय जय की ध्वनि कर रहे थे। इस तरह आदर और सन्मान पूर्वक वह स्तंभ स्वयंवर मंडप में लाया गया। वहां पर छह हाथ की लंबी एक शिला मंगायी गयी और उसे जमीन में सीधी गड़वादी । सिद्ध ज्योतिषी के कथनानुसार उस शिला के आधार से स्तंभ को बड़ी हिफाजत के साथ सीधा खड़ा किया 93
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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