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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर राजकुमारी ने महाबल की तमाम बातें विनीत भाव से ध्यानपूर्वक सुनीं। कुमार का सहवास न छोड़ने की इच्छा होते हुए भी उसे मुद्रारत्न देकर उसने उसकी तमाम बातों को शिरोधार्य किया । अब वे अपने - अपने कार्य की सिद्धि के लिए दोनों वहां से चल दिये । रास्ते में चलते हुए महाबल विचारने लगा"स्वयंवर में अपनी – अपनी सेना सहित अनेक राजकुमार आयेंगे, उस समय एक साधारण पथिक के समान स्वयंवर में मेरा प्रवेश होना भी असंभव है। उसके पिता की सम्मति से राजकुमारी के साथ पाणिग्रहण करना तो दूर रहा परंतु इस दशा में एकाकी उन राजकुमारों की पंक्ति में जाकर बैठना भी दुष्कर होगा; इसलिए मुझे ऐसे समय अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए कुछ प्रपंच अवश्य रचना पड़ेगा । जो कार्य बल से नहीं होता वह बुद्धि प्रयोग से सुलभता पूर्वक हो सकता है । इत्यादि विचारों की उलझन में महाबल आगे बढ़ा जा रहा था, इतने में ही एक वटवृक्ष के नीचे उसने एक हाथी बंधा देखा । उस हाथी के पास कई एक राजपुरुष उसकी लीद को पानी में धो धोकर छलनी में छान रहे थे, यह देख महाबल ने उसका कारण पूछा - राजपुरुषों ने उत्तर दिया - "महाशय जो! कल बहुत से लड़कों के साथ यहां पर राजकुमार आये थे उस समय एक गन्ने में सुवर्ण की जंजीर लपेट कर वे यहां खेलने लगे । गन्ना हाथी के पास पड़ जाने से उसने सोने की जंजीर सहित उस गन्ने को उठाकर खा लिया। अब उस जंजीर को पाने के लिए राजा की आज्ञा से हम लोग हाथी की लीद को पानी से धोकर छान रहे हैं। यह बात सुनकर महाबल कुमार ने उनकी आंख बचाकर एक घास का पूला उठा उसमें राजकुमारी की यह नामांकित सुवर्ण मुद्रिका (अंगुठी) डालकर पूला हाथी के सामने फेंक दिया। उस पूले को जब हाथी ने अपनी सूंड से उठाकर मुंह में डाल लिया तब महाबल वहां से चल पड़ा। ___ लगभग एक पहर दिन चढ़ चुका था । इस समय गोला नदी के किनारे हजारों मनुष्यों का जमघट लगा था, पास में ही एक चिता बनी हुई थी । उसमें से मंद - मंद धूम्र की शिखा काले आकाश की श्यामता में वृद्धिकर रही थी। इस समय हाथ ऊँचा किये हुए एक सिद्ध ज्योतिषी उन लोगों के जमघट की तरफ 87
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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