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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर विचित्र स्वयंवर सोमा के चले जाने पर कुमार बोला – कुमारी! जिस रोज हमारा प्रथम मिलाप हुआ था उसी दिन से वैर धारण करने वाली तुम्हारी सौतेली माता कनकवती ने मौका पाकर तुम्हें कष्ट में डाला है । हे सुलोचने! कनकवती की दासी सोमा से ही मुझे तुम्हारा अतिकष्ट दायक वृत्तांत मालूम हो गया । अहो! थोड़े ही समय में तुमने मृत्यु के समान कैसा महाभयंकर कष्ट सहा! सुंदरी! उस अंधकूप में झंपापात करने पर और इस समय यहां पर अजगर के मुख से तुम्हारी प्राप्ति का यही कारण मालूम होता है, जब तुमने उस अंधकूप में झंपापात किया तब वहां पर रहे हुए इस अजगर ने तुम्हें मूर्छित अवस्था में पकड़ लिया है। और उस अंधकूप से बाहर निकलने का अवश्य कोई गुप्तमार्ग होगा । उस मार्ग से निकल कर वह शीघ्र ही तुम्हें पचाने के लिए इस आम के वृक्ष से लपेटा देने यहां आया था । मैंने उसके दोनों होठ पकड़कर उसे चीर डाला । और उसके मुख से तुम्हें शीप से मोति के समान निकाल लिया, पास ही में पड़े हुए अजगर को देखकर मलयासुंदरी भयभीत हो उठी । महाबल बोला - "सुंदरी! अब तुम्हें डरने की जरूरत नहीं । ऐसी भयंकर दशा में भी हमारा दुर्घट मिलाप हमारे अनुकूल भाग्य की सूचना करता है। ___ अब रात्रि व्यतीत होने आयी थी; पूर्वदिशा ने अपने स्वामी सूर्य का आगमन जानकर लालरंग की साड़ी पहन ली थी । आकाश में टिमटिमाते हुए तेजस्वी तारे धीरे - धीरे छिपते जा रहे थे । वृक्षों पर बैठे हुए पक्षीगण ने चहचहाट शुरू कर दिया था । रातभर के भूखे पशु भी अपने भक्ष्य की गवेषणा में इधर उधर फिरने लगे थे। प्रातःकाल के मंद और शीतल पवन से जंगल के बड़े - बड़े वृक्षों की पत्तियाँ हिल रही थीं । अब सूर्यदेव भी अपनी सुनहरी किरणों से जगत को जागृत करने के लिए उदयाचल पर आ विराजा था। 85
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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