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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र हस्योद्घाटन दुष्टा को पकड़ लाओ।" हे सत्पुरुषो! राजा वीरधवल की इस समय जो हालत है उसको देखते हुए वह रात्रि के व्यतीत होने तक भी जीवित रह जाय तो बड़ा भाग्य समझो । प्रातःकाल होने पर तो वह अवश्य ही चिता में प्रवेश करके प्राण त्याग करेगा। उधर हमारी खोज में फिरते हुए राजपुरुषों को देखकर कनकवती ने मुझसे कहा - "अब हम दोनों को एक जगह रहना फायदे कारक नहीं है । यदि राजपुरुष हमें देख लेंगे तो शीघ्र ही मृत्यु के शरण कर देंगे । यों कहकर उसने मेरे पास से लक्ष्मीपूंजहार आदि सारी वस्तुए ले वह अपनी परिचिता मगधा नामा वेश्या के घर चली गयी। वहाँ पर अकेली रहने के लिए हिम्मत न पड़ने से मैं वहाँ से लुकती छिपती इस तरफ चली आ रही हूं।" हे पथिको! आपने जो मेरे भय का कारण और मेरा परिचय पूछा था; सो मैंने आपके सामने कह सुनाया । महाबल "अहो! आश्चर्य की बात? दुष्ट! स्त्रियों के कैसे विचित्र चरित्र होते हैं! निर्दोष कन्यारत्न का नाश कराया! राजा को मरणांतसम कष्ट में डाला और अपने भी सुख का नाशकर, निन्दित होकर देश त्याग किया । धिक्कार है ऐसी दुष्टा स्त्रियों की तुच्छ बुद्धि को!! पूर्वोक्त प्रकार से मलयासुंदरी के संकट में पड़ने का रहस्योद्घाटन कर सोमा बोली - 'अब रात्रि पूर्ण होने आयी है; इसलिए न जाने मेरे पीछे मेरी खोज में कोई राजपुरुष न आ जाय, अतः मैं अब आगे जाती हूँ' – यों कहती हुई और पीछे की ओर देखती हुई सोमा आगे चली गयी। 83
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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