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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । (अलकापुरीकी) रचनामें ( मातृ कायने) माताके सदृश आचरण करती है ॥ ५ ॥ तस्यां सत्यंधरो नाम राजा भूत्सत्यवाङ्मयः। . . . वृहसेवी विशेषज्ञो नित्योबागी निराग्रहः ॥ ६ ॥ ___ अन्वयार्थः- (तस्य) उस नगरीमें (सत्यवाङ्मयः) सच बोलनेवाला (वृद्ध सेवी) वृद्धोंकी सेवा करनेवाला (विशेषज्ञः ) विशेष कार्योका जाननेवाला (नित्योद्योगी) निरंतर उद्योग करनेवाला (निराग्रहः) हट न करनेवाला (सत्यंधरो नाम ) सत्यंधर नामका (राजा) राजा ( अभूत ) था ॥ ६ ॥ महिता महिषी तस्य विश्रुता विजयाख्यया। विजयाद्विश्वनारीणां पातिव्रत्यादिभिर्गुणैः ॥ ७॥ __ अन्वयार्थ:--(तस्य) उम सत्यंधर रानाकी (महिला) बड़ी (महिषो) प्रसिद्ध पट्टरानी (विश्व नारीणां) सम्पूर्ण स्त्रियोंको (पातिव्रत्यादिभिः ) पातिव्रतादि (गुणैः) गुणों के द्वारा ( विनयात् ) जीतसे (विजयाख्यया) विनया नामसे ( विश्रुता ) प्रसिद्ध (आसीत) थी ॥७॥ मत्यप्यन्तः पुरस्त्रोणां समा जे राजवल्लभा । सैवासीन्नापराकाचित्तौभाग्यं हि सु दुर्लभम् ॥८॥ अन्वयार्थः- (अतःपुर स्त्रीणां ) अन्तःपुरकी स्त्रियों के ( समाजे ) समुदाय (सति ) रहनेपर (अपि) भी (सा) वह (एव) ही (राजवल्लभा ) रानाकी प्यारी ( आनीत् ) थो ( अपरा ) दूमरी,
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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