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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । ८३ स्थाने कन्यामनः सक्तमित्यूचुः सज्जना मुदा । सुधासूतेः सुधोत्पत्तिरपि लोके किमद्भुतम् ॥ ५२ ॥ अन्वयार्थः - ( सज्जनाः ) सज्जन पुरुषोंने ( मुदा ) हर्षसे " ( कन्या मनः स्थाने सक्तं इति ऊचुः) कन्याका मन योग्य पुरुषमें आसक्त हुआ" ऐसा कहा क्योंकि ( लोके ) लोक में (सुधोत्पत्तिः अपि) अमृत की उत्पत्ति (सुधासुतेः) चन्द्रमासे ही (भवति) होती है । ( इति अद्भुतम् ) इसमें क्या आश्चर्य है अर्थात् इस याको ऐसा ही योग्य वर वरना चाहिये था ॥ ९२ ॥ अथ गन्धर्वदन्तां तां श्रीदत्तेनाग्निसाक्षिकम् । दत्तां स जीवकस्वामी पर्यणैष्ट यथाविधि ॥ ५३ ॥ अन्वयार्थ : - ( अथ ) इसके अनंतर (सः जीवक स्वामी) उन जीवंधर स्वामीने ( अग्नि साक्षिकम् ) अग्निकी साक्षी पूर्वक ( श्रीदत्तेन दत्त) श्रीदत्त सेठसे दी हुई ( तां गंधर्वदत्तां) उस गंधर्व दत्ताको ( यथाविधि ) विधिपूर्वक (पर्यणैष्ट) व्याहा ||१३|| इति श्रीमद्वादोभसिंहसूरि विरचिते क्षत्रचुडामणो सान्वयार्थो गन्धर्वदत्ता लम्बो नाम तृतीयो लम्बः ॥
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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