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________________ भौगोलिक शब्द संग्रह श्री वर्धमानचरित्रमें आये हुए भौगोलिक शब्दोंका संग्रह नीचे दिया जा रहा है। शब्दोंके आगे दिये हुए तीन अंकोंमें पहला अंक सर्गका, दूसरा श्लोकका और तीसरा पृष्ठका सूचक है। एक नामका एक ही बार संकलन किया गया है। म अमरावती = इन्द्रकी नगरी ५।७।४७ भारत = भरतक्षेत्र ११७।२ अलंका = विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीकी एक नगरी भारतवास्य = भरतक्षेत्र ४।११३३ ५।४७१४७ मगध = भरतक्षेत्रका एक नगर ४।१।३३ अवन्ती = एक देश ( आधुनिक मालवा ) मथुरा = उत्तरप्रदेशकी प्रसिद्ध नगरी ४।८८१४४ १३।१११५३ मधुवन = पुरुरवा भीलके रहनेका वन ३।३८।२५ ईशान = दूसरा सर्ग ३३८३।२९ मन्दिर = भरतक्षेत्रका एक नगर ३।९१।३० ऋजुकूला = एक नदी १७।१२८२४८ महाशुक्र = दशम स्वर्ग ४।९२।४५ कच्छा = विदेहका एक देश १२।१।१४३ __ महाशुक्र = एक स्वर्ग १३१८३।१६७ कापिष्ठ = आठवाँ स्वर्ग १२१७०११५३ माहेन्द्र = चौथा स्वर्ग ३।९४।३० कामरूप = एक देश जो आजकल आसाम रथनुपूर = भरतक्षेत्रकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर कहलाता है ४।४९।३९ ५।१०१।६७ कुण्डपुर-विदेह देशका एक नगर, भगवान वर्धमान- राजगृह = भरतक्षत्रका एक नगर राजगृह = भरतक्षेत्रका एक नगर ३१११।३२ की जन्मनगरी १७१७४२२२ राजगृह = मगधदेशका एक नगर ४६।३३ कूलपुर = विदेह देशका एक नगर, जहाँके कूल राजा रौप्यगिरि = विजयार्ध पर्वत १२।२।१४३ के यहाँ भगवान् वर्धमानका प्रथम आहार हुआ विजयार्ध = जम्बूद्वीप भरतक्षेत्रका एक नगर ५।१४६ था १७.१२००२४७ विदेह = भरतक्षेत्र का एक देश ( बिहार प्रान्तका एक कौलेयकपुर = एक नगर ३।७२।२८ भाग जम्बूद्वीप = आद्य द्वीप १७।१।२२७ १७।२ विनीता = भरतक्षेत्रकी एक नगरी ( अयोध्या ) जम्भक = ऋजुकूला नदीके तटपर बसा हुआ ग्राम, ३।४३।२६ जिसके उपवनमें भगवान वर्धमानको केवलज्ञान श्वेतपत्रा = पूर्वदेशकी एक नगरी १।१४।३ हुआ था १७।१२८२४८ श्वेतविका = एक नगरी पुण्डरीकिणी = जम्बूदीपके पूर्व विदेह क्षेत्रकी एक ३३८६।२९ सनत्कुमार = तीसरा स्वर्ग ३३८८।३० नगरी ३।३५।२५ सहस्रार स्वर्ग = बारहवाँ स्वर्ग १५।१९७।२१७ पूष्योत्तर = प्राणत स्वर्गका एक विमान सिंहगिरि = भरतक्षेत्रका एक पर्वत ११११११३२ १६६४२२६ सीता = विदेहकी एक नदी १२।१।१४३ पूर्वदेश = जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्रका एक देश १७।२ सुरमा = भरतक्षेत्रका एक देश ५।३२१५१ पोदनपुर = जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्रके सुरमादेशका एक सौधर्मस्वर्ग = पहला स्वर्ग ३२४१२६ नगर ५।३७५२ स्वस्तिमती = एक नगरी ३।९६।३० प्राणत = चौदहवां स्वर्ग १६।६३।२२६ हेमद्युति = विदेहके कच्छा देशका एक नगर ब्रह्मलोक = पञ्चम स्वर्ग ३।११२।३२ १४।३।१६८
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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