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________________ ........... ना.३, २५५१ ............... ना.१, ६७७ १५७१ गुणरत्नसूरी.... १५७२ गुणवर्द्धनसूरी (गुणरत्नसूरिपट्टे) ........ __१५८३ हेमसिंहसूरी १७१५ रत्नाकरसूरी (पद्मचंद्रसूरिपट्टे) ... .............. बु.१, ९९५ ना.२, १३१२ ग्रंथ परिचय - चंद्रप्रभ प्रभुनुं चरित ग्रंथमां आवतुं जैनोना वर्तमान २४ तीर्थंकर पैकी आठमा चंद्रप्रभस्वामी, चरित ग्रंथकार पहेलां थयेला श्री हेमचंद्राचार्यना त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरितना पर्व त्रीजाना सर्ग छठामां आपेलुं छे तेनो सार ए छे के: धातकीखंड द्वीपना प्राग्विदेह क्षेत्रना मंगळावती विजयमा रत्नसंचया नामनी नगरीमां पद्म नामना राजा थयेला. राज करवा छतां ते तत्त्ववेत्ता होई संसारवासमां वैराग्यदशाने भजता हता पछी तेणे युगंधर गुरुनी पासे दीक्षा लई चारित्र पाळी छेवटे वीश स्थानकोमांथी केटलांक स्थानकोना आराधनथी तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन कर्यु ने काळे करी आयुष्य खपावी पछी वैजयंत नामना विमानमां महातपस्वी तरीके उत्पन्न थया. आ पूर्वभवो थया. पछी चंद्रानना नगरीमां महासेन नामना राजाने त्यां लक्ष्मणा नामनी तेनी राणीनी कुखे उक्त वैजयंत विमानमा रहेल पद्मराजानो जीव ३३ सागरोपम आयुष्य पूर्ण करी त्यांथी च्यवी चैत्रकृष्ण पंचमीने दिने चंद्र अनुराधा नक्षत्रमा आवतां अवतर्यो; ने ते पछी पौष मासनी कृष्ण द्वादशीए चंद्र अनुराधा नक्षत्रमा आवतां तेनो जन्म थयो. गर्भमा रहेती वखते माताने चंद्रपान करवानो दोहद थयो ने प्रभुनी चंद्रना जेवी कांति हती तेथी चंद्रप्रभ ए नामथी पिता बोलाववा लाग्या. दोढसो धनुष उन्नत शरीरवाळा प्रभुए पोताना भोगफळ कर्मने जाणी माता पितानी आज्ञा पाळवाने माटे पोताने योग्य एवी राजकन्याओ साथे पाणिग्रहण कयें. दीक्षा लेवामां उत्सुक * आ चिह्नवाला गुणदेवसूरिना शिष्य गुणरत्नसूरिए गुजराती भाषामां ऋषभप्रबंध अने भरतबाहुबलिप्रबंध रचेल छे (जुओ मारो "जैन गूर्जरकविओ" प्रथम भाग पृ. २९ थी ३२); वळी ते गुणदेवसूरिना बीजा शिष्य नामे ज्ञानसागर उपाध्याये श्रीपालरास (सिद्धचक्ररास) सं. १५३१ मां रच्यो छे. [जुओ ते ज ग्रंथ पृ. ५८] चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।
SR No.022638
Book TitleChandraprabh Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHitvardhanvijay
PublisherKusum Amrut Trust
Publication Year1930
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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