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________________ अनेक महा औषधी अने मंत्रोने बतावी ते देवता स्वस्थाने गया. एकदा श्रीगुरुए ( हेमचंद्रना गुरु देवचंद्रसूरिए) आत्रणे मुनिओने श्रीसिद्धचक्रजीनो मंत्र तेना आम्नाय सहित बताव्यो. ते मंत्र पद्मिनी स्त्रीना उत्तर साधकपणाथी सधाय. ते रीते सधाय तो इच्छित वर मळे. अन्यथा नहि. ' पछी अन्यदा कुमार गाममां जतां धोबीनी पासेना वस्त्रथी पद्मिनीनी भाल मळतां तेना पतिनी संमति लीधी, ते पति पत्नी गिरनार आव्यां अने ते द्वारा शुद्ध ब्रह्मचर्यपूर्वक मंत्र साध्यो ए वात आवे छे. 'एटले तीर्थनो अधिष्ठाता श्रीविमलेश्वर नामनो देव प्रत्यक्ष थइ पुष्पवृष्टि करी इच्छित वर मागो एम बोल्यो. ततः श्रीहेमसूरिणा राजप्रतिबोधः, देवेन्द्रसूरिणा निजाऽवदातकरणाय कान्तीनगर्याः प्रासाद एकरात्रौ ध्यानबलेन सेरीसकग्रामे समानीत इति जनप्रसिद्धिः । मलयगिरिसूरिणा सिद्धान्तवृत्तिकरणवर इति त्रयाणां वरं दत्वा देवः स्वस्थानमगात् । त्यारे श्रीहेमसूरिए राजाने प्रतिबोध करवानो = जैन बनाववानो अने देवेन्द्रसूरिए पोतानी प्रसिद्धि माटे कान्ति (कांची-दक्षिण) नगरीमांथी प्रासाद एक रात्रिमां ध्यानबलथी सेरीसकमां लाववामां आवे एवो वर माग्यो एवी जनप्रसिद्धि छे, मलयगिरिसूरिए सिद्धांतो पर वृत्तिओ रचवानो वर माग्यो आ प्रमाणे वर आपी देव पोताने स्थाने गयो. ' = आ देवेन्द्रसूरिनी लोककथा - दंतकथा सं० १४४२मां जिनमंडन गणिए नोंधी छे अने तेनी साथै सेरीसकनो संबंध मूक्यो छे ते सूरिनागेन्द्र गच्छना हता के एवी बीजी हकीकत जणावी नथी अने आ दंतकथा छे एम ते जणावे छे.' हेमचंद्राचार्यना समकालीन एक देवेन्द्रसूरि हता ए संबंधी जिनमंडनगणि पहेलां सं. १४२२मां ६३०७ श्लोक प्रमाणमां कृष्णर्षिगच्छना जयसिंह सूरिए रचेला कुमारपाल चरित्र महाकाव्यमां प्रथम सर्गना श्लोक २३४ थी २६० सुधीमां जे जणाव्युं छे ते ए छे के त्यां (पाटणमां) सोमचंद्र ( हेमचंद्र आचार्य थया ते पहेलानुं मुनि तरीके नाम ) ना देवेन्द्रसूरि मित्र हता. गौडदेशवासी कोइ पासेथी सांभळ्युं के गौडदेश कलानो भंडार छे तेथी कलाभ्यासार्थे कौतुकवंता बने गौडदेश प्रति निकळ्या. वचमां खिरालू गाम आव्युं, त्यां कोइ विद्यासिद्ध यति मळ्या. तेणे ते बंनेने क्यां जाओ छो एम पूछतां कलार्थे देशभ्रमण करवा मांगे १. हाल पाटण विराजता प्रवर्त्तक श्रीकान्तिविजयजीना विद्वान् शिष्य पुण्यविजय मुनिश्रीए पाटणमां ता. १७-३-३० आ प्रस्तावना बतावतां जिनमंडन गणिए नोंधेली जनकथापर मारुं ध्यान खेंच्युं ते माटे हुं तेमनो उपकार मानुं छं. चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना । 18
SR No.022638
Book TitleChandraprabh Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHitvardhanvijay
PublisherKusum Amrut Trust
Publication Year1930
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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