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________________ प्रस्तावनी लेवा माटे तपस्वी मुनि आवे छे । भक्तिभावथी रोमांचित थईने शिवदेव, मुनिने आहारदान करे छे । ते वखते खाद्य बानगीओ आपवा आवेली पांच कन्याओए शिवदेवनी भक्तिनी अनुमोदना करी । त्यार पछी शिवदेवे प्रसन्न मनथी भोजन कर्यु । अनुक्रमे सारी भावनावाळा विचारोथी आयुष्य पूर्ण करीने शिवदेव जिनदत्तरूपे जन्म्यो अने जे पांच कन्याओए मुनिदाननी अनुमोदना करी हती ते पांचे बीजा भवमा जिनदत्तनी पत्नीओ थई । विमलमतो आदिनी दीक्षा तथा जिनदत्तकेवलीनु मोक्षगमन उपर जणावेल श्री जिनदत्तकेवलिकथित पूर्वभवकथा सांभळाने विमलमती आदि पांचे राणोओने जातिस्मरण ज्ञान थयु अने ते पांचेए दीक्षा लीधी। श्री जिनदत्तकेवली दीर्घ समय सुधी महीमडलमा विचरीने, अनेक जनोने धर्मबोध आपीने अते मोक्षे गया। जिनदत्तराजाए दीक्षा लीधा पछी प्रधानोए तेमना पुत्र विमलबुद्धि कुमारने। राज्याभिषेक को अने ते कल्याणकर सुखोने भोगवे छ । ग्रन्थकारनी प्रशस्ति पूर्णिमापक्षना पट्टधर आचार्य श्री गुणसागरसूरिना शिष्ये संवत १४७१ मां संक्षेपथी रचेली, अद्भुत पुण्यप्रभाववाळी अने सांभळवामां अमृत समान, आ जिनदत्त राजानी कथाने, हे भव्यजनो ! तमे कल्याण माटे दीर्घ समय सुधी सांभळजो ॥१ संयमसिंह नामना गणिना आग्रहथी श्री गुणसमुद्रसूरिए साधारण जनो उपर अनुग्रहबुद्धिथी रचेली आ कथा दीर्घ समय सुधी जय पामो ॥ २ अक्षयतृतीया, सं० २०३४ ता. १०-५-१९७८ अमृतलाल मोहनलाल भोजक
SR No.022637
Book TitleJindutta Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOmkarshreeji
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1978
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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