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________________ २-प्राथमिक-वक्तव्य। coooooooo सज्जनगण ! जब कि-संसार में सत्य और धर्म की अत्यन्त हानि-कमजोरी हो जाती है, तब उस हानिको हटाने के लिये अति बलवान् , तेजस्वी, बड़े ही भाग्यशाली, आदर्शरूप, नररत्नोंका जन्म होता है और विपरीत वातावरण फैल जानेपर भी वे अपने आत्मबलसे सच्चा, प्राचीन, धर्मकी राह पर उत्तम लोगोंके दिलको खींच खींचकर उन्हें आत्मकल्याणके मार्गपर लाते हैं। तब उसी मार्गके द्वारा अनेक भवभीरु प्राणि अपना आत्मकल्याण करनेके लिये समर्थ होते हैं । इसी स्वाभाविक नियमानुसार इस श्रीवीरजिनेन्द्र भगवानके शासनमें शिथिलाचारी केवल जैनमात्र नामधारियोंके उपदेशको सुन सुन कर भ्रमजालमें पड़ी हुई यह जनता कुपरंपरासे प्रचलित आचारशिथिल, वेषविडम्बक, जिनप्रतिमोत्थापक और यथार्थ साधु-श्रावकोंकी क्रियालोपनता आदि कपोल-कल्पित शास्त्रमर्यादाको ही मानने लगी। उसी मौके पर प्रस्तुत ग्रन्थमें वर्णनीय-आबालब्रह्मचारी, सर्वतन्त्रस्वतन्त्र, शुद्धक्रियोद्धारक, सौधर्मबृहत्तपोगच्छीय, श्वेताम्बरजैनाचार्यवर्य, श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने उस शिथिलाचारादि की वृद्धि को जड़ सह ।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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