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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। श्रीमालाऽऽख्योऽन्यदा कश्चिद्, विदेशी नृपसंसदि। एकं हीरकमादाय, भूपमित्थमवोचत ॥१०॥ भूपास्य प्रेक्षणं सम्यग् , विधेयं गुणमूल्ययोः। परीक्षकानथाऽऽहूय, स हीरकमदर्शयत् ॥११॥ प्रसशंसुस्ततस्तेऽपि, गुणदोषविदांवराः। इतः कार्यवशादत्र, पासूज्याख्योऽप्यगाद् गुणी॥१२॥ गुणमूल्ये नृपोऽप्राक्षी-द्धीरकस्य मुदाऽथ तम् । सोऽवकस्ति महन्मूल्यं, किन्त्वेकोऽस्मिन्नसद्गुणः १३॥ आहड़नगर के चंद्रसेन राजाने सप्रेम उस पासूजी को रत्नादि खरीद करने के वास्ते पास में रक्खा. ॥ ९ ॥ एक समय राजा की सभा में कोई विदेशी श्रीमाल नामक व्यापारी एक हीरे को लाकर इस प्रकार भूप से बोला ॥ १० ॥ हे राजन् ! इस हीरे की गुण मूल्य की अच्छी तरह परीक्षा करना चाहिये, बाद में राजाने परीक्षकों को बुलाकर हीरा दिखलाया ॥११॥ गुण दोषों के जानकार व्यापारियों ने भी हीरे की खूब प्रशंसा की, इस मौके पर कार्यवश गुणज्ञ पासूजी भी आगए ॥ १२ ॥ अब नृपने सहर्ष हीरा का गुण मूल्य पासूजी को पूछा, वे बोले कि-हीरा बड़ा कीमती है, लेकिन इस में एक बड़ा अवगुण है सो सुनिये ॥ १३ ॥ रक्षेद्यः कोऽपि पार्श्वेऽदो, म्रियेत तस्य सुन्दरी। .. चेदस्ति तेऽत्र सन्देहः, पृच्छयतांतर्हि तत्पतिः॥१४॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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