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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। छत्तीस गुणों से अति सुशोभनीय श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीय-सौभाग्यशाली जैनाचार्य भट्टारक श्री श्री१००८श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की संक्षेप सुगमार्थ सुखपूर्वक सम्यक्त्व देनेवाली श्लोकमय जीवनवृत्तान्त की एक पेटी के तुल्य ‘राजेन्द्रगुणमञ्जरी' को अपने व दूसरों के ज्ञानार्थ गुरुभक्ति से मैं बनाता हूं ॥२-३ ॥ २-पारिखकुलोत्पत्तिः सत्पुरीगुणसम्पन्ना, बभूवातिमनोहरा । चन्देरी नगरी ख्याता, यत्रोषुः सुखिनो जनाः॥ ४॥ १.-आर्य देशोत्पन्न १ कुलीन २ जातिमान् ३ रूपवान ४ दृढशरीरी ५ धैर्यवान ६ निर्लोभी ७ अल्पभाषी ८ अमायी ९ सूत्रार्थ--स्थिर १० आदेय वचन ११ सभाजीत १२ स्वल्पनिद्रालु १३ शिष्यों पर समचित्त १४ शिष्यों व लोगों के देश--काल--भावज्ञ १५-१६--१७ परतीर्थी आदिकों को शीघ्रोत्तर दाता १८ नानादेशभाषावित् १९ पञ्चविधाचारयुक्त २४ चतुर्भङ्गीसे सूत्रार्थदाता २५ सप्रपञ्चनयवादी २६ हेतुद्वारा धर्मस्थापक २७ संक्षेपसे समझानेमें चतुर २८ नयों के अनुसार कथन कर्ता २९ पदार्थग्राहण कुशल ३० स्वपर-सिद्धान्तवेत्ता ३१--३२ उदारस्वभाव ३३ परवादियों को असह्य ३४ कोप रहित, सर्वत्र कल्याणकर ३५ शान्तदृष्टि ३६ । ये और भी अनेक मूलगुण उत्तरगुणों से अतीव सुशोभनीय थे।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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