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________________ १८६ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । रको कायोत्सर्ग थुइ २ पुक्खरखरदी० सुअस्सभग० वंदण० अन्नत्थ० १ नोकारनो काउसग्ग पारी नमोई ० थुइ ३ सिद्धाणं बुद्धाणं हेठा बैठी नमुत्थुणं० जावंति ० इच्छामि० जावं० इच्छा० तवन भणुं नमोई० उबसग्गादि तवन जयवीयराय संपूर्ण कही दुजा चैत्यवंदण न कहणा, लगते ही भगवान्हं इत्यादि चार खमासमणा पछे पड़िकमणो ठावणो चैत्यमें पण चैत्यवंदन उत्कृष्ट ऐसे ही जाणना || (२) सामायिक विधि पूर्वे करो जैसे ही और जो गुरुवंदन करणा होय तो इरियावही करने द्वादशावर्त्त वंदने करके करणा || (३) ठावारो पाठ - इच्छं सव्वस्सवि सब जणा साथ कहणा, आवे तो सर्व जणा साथे मिच्छामि दुक्कडं देणो, ऐसे ही वंदेतु आदिमें तथा अंतमें वंदामि जिणे चउवीसं सर्व जणा साथै कहणा. (४) और सामायिक पडिकमण चैत्यवंदन विधि चोपडी में है ज्यों ही करणा. (५) पूजादि विशिष्ट कारणे चौथी थुइ कहणेमें ना नहीं कहणा, नंदी प्रमुखमें भी ऐसे ही जाणना. (६) रत्नाधिक विना दूसरे साधुकुं वांदणा देणा नहीं,
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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