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________________ श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । १७९ उत्तम २ ग्रन्थ बनाये, ज्ञान और ध्यानके बलसे भव्य लोगों के सुखदाई होनहार व अनहोनहार के अनेक वृत्तान्त प्रकाशन किये थे, जैसे- एक समय गुरुमहाराज विचरते हुए संवत् १९५२ की साल उषाकाल में शुभ ध्यान के योग से प्रथम से ही अपने शिष्यों को कह दिया था कि - " शिष्यों ! शहर कुकसीमें बड़ा भारी अग्निका उपद्रव होगा " उसी प्रकार १९ दिनके बाद वह सारी कूकसी जल गई । यह वृत्तान्त वहाँके समीपवर्ती ग्रामों के बहुत से लोग जानते हैं, शिष्यवर्ग इस भूतपूर्व दृष्टान्तको प्रत्यक्ष देखकर बड़े ही अचंभित हुए || १ | इसी प्रकार संवत् १९४१ की साल शहर अमदाबाद में भी रत्नपोलके अन्दर महान् अग्निका उपद्रव हुआ उस समय जलनेके भय से समीपवर्ती जिनालय में विराजित श्रीमहावीर प्रभुके बिम्बको श्रेष्ठिवर्यने एकदम उठाकर अन्य स्थानमें स्थापन कर दिया उसी वक्त इस कुल बनावको किसी एक श्रावकने आकर गुरुमहाराज से निवेदन किया । बस उसको सुनते ही गुरुश्रीने ज्ञानबलसे कहा " भो भद्र ! प्रभुको उठाकर अन्यत्र स्थापन किया यह कार्य ठीक नहीं किया, जब श्रावकने पूछा ठीक क्यों नहीं ? तब गुरुमहाराजने फरमाया कि उस समय में जिनमूर्तिको उठवा - कर अन्यत्र स्थापनेसे मंदिर बनवाने वाले सेठ के पुत्रहानि अथवा धनहानि होगी । " बस, एक मासके बाद अचानक रोग पीड़ासे पीड़ित होकर बड़ा ही प्रतिष्ठित सेठका बड़ा
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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