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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। १६५ कराए ऐसे महोपकारी गुरुदेव सदैव मेरे अन्तःकरणमें वसते हैं ॥ ६३१-६३२ ॥ यश्चोन्नतिं बहुविधां जिनशासनस्य, सद्भाषणेन सुजनोपकृतिं व्यधत्त । दुर्वादिकुञ्जरकुदर्पहरैकसिंहस्तत्पदृमण्डनकरो धनचन्द्रसूरिः ॥६३४॥ प्रश्नोत्तरतरंगश्च, मांसभक्षणवारकम् । श्रीजैनकल्पवृक्षस्तु, शीलसुन्दरी-रासकम् ।। ६३५ ।। चतुर्थस्तुतिनिर्णय-शंकोद्धारो महोत्तरम् । शास्त्राण्येवमनेकानि, कृतानि सुधियाऽमुना।। ६३६॥ उन श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराजके पाटको सुशोभित करने वाले कलिकालसिद्धान्तशिरोमणि-श्वेताम्बरजैना चार्य श्रीमद्विजयधनचन्द्रसूरिजी महाराज हुए, जिन्होंने नाना प्रकारसे जिनशासनकी उन्नति की, उत्तम व्याख्यानों द्वारा भव्य प्राणियोंका उपकार किया और दुष्टवादी रूप हाथियोंके अहंकारको नष्ट करनेमें सिंहके समान हुए और प्रश्नामृतप्रश्नोत्तरतरंग १, जैनजनमांसभक्षणनिषेध २, जैनकल्पवृक्ष ३, शीलसुन्दरीरास ४, चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धार दूसरा नाम 'चतुर्थस्तुतियुक्तिनिर्णयच्छे दनकुठार' भी है ५, जैनविधवापुनर्लग्ननिषेध ६, प्रश्नोत्तरमालिका ७, ढूँढकनन्दराममतखण्डन ८ और त्रिस्तुतिकप्रभाकर ९ इत्यादि ग्रन्थों जिनमें
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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