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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। १५३ ओमिति पण्डिताः कुर्यु-रश्रुपातं च मध्यमाः। अधमाश्च शिरोघातं, शोके धर्म विवेकिनः ॥५८९ ॥ सारगर्भमिमं वाक्यं, श्रुत्वा सर्वो जहाच्छुचम् । आगमोक्तिविधानेन, विदधे देववन्दनम् ॥ ५९० ॥ ___ संसारमें तरह तरहकी विद्याएं, औषधियाँ अति स्नेहवाले मा बाप, बन्धुगण, लड़के, स्ववाछित कुल देव देवियाँ, बहु तसा घरमें धन, कुटुम्ब परिवारके स्वजन लोक, शरीर संबन्धी पराक्रम, वैमानिक जातिके देव और असुरनिकायादिक देव, एवं इनके इन्द्र भी, टूटे हुए आयुष्यको जोड़नेके लिये कभी समर्थ नहीं हो सकते हैं । ५८८ ॥ शोक आने पर पापसे डरने वाले और आत्माको दुर्गतिसे बचाने वाले विद्वान लोग तो फक्त ॐ मात्र ही बोलते हैं, मध्यम कोटीके लोग आँखोंसे आँसू डालते हैं, अधम लोग माथा फोड़ते एवं छाती भी कूटते हैं, और विवेक वाले शोक निवारणार्थ उभय लोकमें हितकारी धर्मका ही सेवन करते हैं ॥५८९ ।। मुनिश्रीके सार से भरे हुए वचनोंको सुनकर सारे संघने निरर्थक शोक संतापको छोड़ दिया और जिनागमों में कहे हुए विधिविधानसे सत्तीर्थरूप श्रीवर्धमानस्वामीके जिनालयमें देववन्दन किये ॥ ५९० ॥ चतुर्विधस्ततः संघो, भवौदास्यमुपेयिवान् । अधीयन्नेकचेतास्तं, स्वस्वस्थान उपाययौ ।। ५९१ ।।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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