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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । १३३ का - व्याकरण, २१ - हीर प्रश्नोत्तर, २२ - तर्कसंग्रहफक्किका, २३विचारसारप्रकीर्ण, २४ - अष्टाध्यायी, इसी प्रकार सुन्दराक्षरमय दूसरे भी नानाप्रकार के ग्रन्थरत्न ज्ञानभण्डागार में शोभा दे रहे हैं, यहाँ तो केवल दिङ्मात्र ही लिखे गये हैं ||५१६-५१७॥ गुरुश्रीने संसार में मन वचन और काय इन तीनों योगसे सभीका महोपकार किया है, अतः वे धन्यवाद के पात्र हैं कि जिन्होंने अपना जीवन परोपकारके लिये इस प्रकार पूर्ण किया || ५१७ ॥ ४३--मण्डपाचलयात्राप्रस्थानं परं श्वासवृद्धया राजगढाऽऽगमनं, मुनिगणवर्णनं च श्रीवडनगरस्याथ, चतुर्मास्यास्त्वनन्तरम् । अकस्मादुत्थितः श्वासो, गुरोर्दुष्टो भयप्रदः ।। ५१८ ।। माण्डवगढयात्रार्थं, संघेन प्रार्थनीकृतः । तामङ्गीकृत्य सद्भावात्, श्वासेऽप्येषः स्वधैर्यतः ५१९ संधैः सार्धं ततोऽचालीत्, साहस्येकशिरोमणिः । तिथिमात्रैश्च पूर्णेन्दु- र्यथा शिष्यैर्निदेशः ॥५२०॥ तपस्विमुख्यसत्पात्रः, श्रीरूपविजयाह्वयः । आहोरे तिथिसाधूनां पञ्चत्रिंशदुपोषणे ॥ ५२१ ॥ भिक्षाssनीता मुदा तेन, वैयावृत्यकरोऽप्यतः । व्यक्ताद्विनतिर्भक्का - स्तपस्याऽनेकधा कृता ।। ५२२ ।।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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