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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। आगमविषयाः सर्वे, प्रायेणास्मिन् समागताः। जायतेऽनेन सद्बोधो, धीमतां हि विशेषतः॥४८९।। अत्राशीतिसहस्राणां, शब्दानां सङ्ग्रहः कृतः । श्लोकानां पश्चलक्षाणि, विद्यन्ते किल सजनाः!।४९० तथा शब्दाम्बुधिः कोषो-ऽप्यकारादिक्रमेण च । शब्दव्याख्यां विना तस्या-ऽनुवादः संस्कृते कृतः ।४९१ सटीकसकलैश्वर्य-स्तोत्र कल्याणमन्दिरे। रौहिणेयप्रबन्धश्च, सपद्या शब्दकौमुदी ॥४९२ ।। और वहीं बहुत प्रकारसे उनके अर्थ जैसे आगमोंमें व अन्य ग्रंथोमें दिखलाये हैं वैसे ही पृथक् २ रूपसे दिखला दिये गये हैं। बड़े बड़े शब्दों के अधिकारोंकी नम्बर वार सूचियाँ भी कर दी गई हैं ।। ४८८ ॥ इन महाकोशमें बहुत करके जैनागमोंके विषय तो सभी आगये हैं। अतएव विद्वानोंको विशेषतया इसके द्वारा ही जैनागमोंका महोत्तम ज्ञान हो सकता है । ४८९ ॥ हे सजनो! इसमें अकारादि वर्णानुक्रमसे करीब अस्सी हजार प्राकृत शब्दोंका संग्रह है और पाँच लाख श्लोक हैं ॥ ४९० ॥ दूसरे २-' शब्दाम्बुधि' कोषमें भी अकारादिके अनुक्रमसे प्राकृत शब्दोंका संग्रह किया है। उसमें शब्दोंकी व्याख्या रहित केवल संस्कृतमें ही अनुवाद किया है ॥ ४९१ ॥ ३-सकलैश्वर्यस्तोत्रसटीक,
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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