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________________ ११८ श्री राजेन्द्र गुणमञ्जरी । ३८ - गुरोर्ज्ञानध्यानोपरि सत्योपनयः - आहोरसंघ मेषोऽवक्, प्रतिष्ठां किल साञ्जनाम् । बाणेन्द्रियन वैकाडे, वेगतः संघ । कारय ॥। ४५१ ॥ संघोsप्राक्षीत्कथं शीघ्रं, दुष्कालोऽग्रे पतिष्यति । तथासौ कारयामास, प्रोक्ताब्दे शुभभावतः ||४५२|| पबाणनन्दभूवर्षे ऽतिदुर्भिक्षं ततोऽपतत् । सत्यवाक्यं गुरोर्हष्ट्वा, सोऽस्मरत्तं मुहर्मुहुः ||४५३|| जैसे-एक समय गुरुवर्य श्रीआहोर संवको बोले कि १९५५ के सालमें ही जल्दी से साञ्जनशलाका प्रतिष्ठा करालो ।। ४५१ ।। संघने पूछा गुरो ! शीघ्रतः करानेकी क्या जरूरत ? तब गुरूजी बोले कि अगले वर्ष में बड़ा ही दुकाल पड़ेगा बाद शुभ भाव से श्रीसंघ ने कहे हुए वर्ष में ही शीघ्र साञ्जनशलाका प्रतिष्ठा गुरुदेव से करवा ली तदनन्तर १९५६ की सालमें चारों खूंट त्यन्त दुर्भिक्ष पड़ा | तब संघ गुरूके सत्य वचनको देखकर बारंबार उनको याद करने लगे || ४५३ || १९५५ 1 भूत बाणनवैकाब्दे, गोडीपार्श्वजिनालये । यदisit पुर आहोरे, बहिश्वारौ पुरस्य वै ॥४५४॥ सुद्धवैश्च महानन्दैः, शास्त्रप्रोक्तं यथाविधि । प्रतिष्ठां साञ्जनां कृत्वा, तदन्ते चापि फाल्गुने || ४५५ ||
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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