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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । श्रीमद्वीरजिनेन्द्रस्य, श्राद्धो रामाजरूककः । अकारयज्जिनं युग्मं, मनात्वाऽस्थापि तत्स्त्रिया | ३२६ | उसमें गुरुमहाराजने सं० १९५९ वैशाख सुदि पूर्णिमा के रोज सविधि महोत्सव के साथ प्राचीन अति मनोहर श्री आदिनाथ भगवानकी मूर्ति स्थापन की ॥ ३२२ ॥ १९११ ज्येष्ठ सुदि ८ के दिन जमीन खोदने से श्री ऋषभ, संभवनाथ और शान्तिनाथ ये तीनों के जिनबिम्ब निकले थे ।। ३२३ ।। उनमें आसपासके दो जिनबिम्ब कायोत्सर्ग ध्यान से शोभायमान हैं और इन्होंकी पालगटी पर प्रतिष्ठा सूचक नीचे मुजब लेख भी है || ३२४ ॥ विक्रम संवत् ११४३ उत्तम मास वैशाख सुदि २ गुरुवारके रोज श्रीवीर - जिनेन्द्रके श्रावक रामा जरूकने ये जिनबिम्ब कराये | और उसकी स्त्री मनातुने उन्हें स्थापन किये || ३२५-३२६ ।। 1 " बृहद्गच्छेऽजितदेव-सूरिशिष्येण सूरिणा । विजयाद्येन सिंहेन, चैतच्चक्रे प्रतिष्ठितम् ॥ ३२७ ॥ पुनर्ग्रामबहिश्चापि वीराङ्गविकलत्वतः । संस्थाप्यान्यत्र तत्स्थाने, एतस्यां पूर्णिमातिथौ ॥ ३२८ स धीमान् शास्त्रवाक्येन, सहाऽञ्जनशलाकया । प्रतिष्ठां नूत्नबिम्बस्य, विदधे तीर्थवृद्धये ॥ ३२९ ॥ गुरुनिन्दां प्रकुर्वन्ति, दुर्जनाः कर्मणाऽमुना । शास्त्रतत्त्वं न जानन्ति, ते दृश्यन्ते निशादनाः ||३३० ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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